दीपावली का पर्व धनतेरस के आगमन के साथ ही प्रारंभ हो जाता है, धनतेरस के साथ ही दिए जलाने की परंपरा भी शुरू हो जाती है. धनतेरस के बाद सबसे महत्वपूर्ण उसका अगला दिन “रूप चतुर्दशी” है. जैसा कि नाम से ही विदित है “रूप की चतुर्दशी”. कहा गया है कि रूप चतुर्दशी के दिन एक विशेष प्रक्रिया के तहत स्नान करने से मनुष्य का रूप निखरता है.
आज हम रूप चतुर्दशी के महत्व और इससे जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में चर्चा करेंगे. साथ ही हम यह भी चर्चा करेंगे कि आखिर रूप चतुर्दशी धनतेरस के बाद ही क्यों आती है?
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आखिरी रूप चतुर्दशी धनतेरस के बाद ही क्यों आती है?- मित्रों रूप चतुर्दशी अथवा छोटी दीपावली मनुष्य का रूप निखारने के लिए मनाए जाने वाला एक त्यौहार है. यह धनतेरस के अगले दिन आता है धनतेरस धन की वृद्धि के लिए मनाए जाने वाला एक त्यौहार है. इसमें भगवान धन्वंतरी, महालक्ष्मी और कुबेर महाराज से धन की कृपा बरसाने के लिए प्रार्थना की जाती है. और अगले दिन मनाई जाती है रूप चतुर्दशी.
मित्रों यह तो हम सभी जानते हैं कि यदि हम बहुत सुंदर हैं लेकिन हमारे पास धन नहीं है और हमारा जीवन निर्धनता में बीत रहा है तो हमारी सुंदरता भी उस निर्धनता के तले दब जाती है. रूपवान होने के बावजूद भी हम निर्बल और दयनीय प्रतीत होने लगते हैं. इसलिए हमारा समाज पहले दिन धनतेरस को ईश्वर से धन बरसाने की प्रार्थना करता है और दूसरे दिन रूप की.
यदि हमारे पास धन होगा तो हमारा सौंदर्य अपने आप ही बढ़ने लगता है. यदि किसी के चेहरे का रंग काला भी है और बचपन से ही वह कुरूप है तो धनी होने के पश्चात उसके चेहरे पर भी एक अलग चमक आ जाती है. किसी व्यक्ति को देखने से ही प्रतीत हो जाता है कि वह कितना रईस है! इसलिए कहा जा सकता है कि धन की वृद्धि के पश्चात ही रूप में अटल वृद्धि होती है.
क्या है इससे जुड़ी पौराणिक कथा?- मित्रों रूप चतुर्दशी मनाने की परंपरा दीपावली मनाने की परंपरा के बाद कई हजार वर्षों बाद शुरू हुई थी. रूप चतुर्दशी का महत्व “श्री कृष्ण” की वजह से बढ़ा था. इसी दिन श्रीकृष्ण ने “नरकासुर” नाम के एक राक्षस का वध किया था. इस उपरांत उनकी पत्नी सत्यभामा भी उनके साथ थी.
नरकासुर का वध के कारण है इसे “नरक चतुर्दशी” भी कहा जाता है. इसके पश्चात श्रीकृष्ण ने ब्रह्म मुहूर्त में एक महा स्नान किया था, तथा साथ ही यह भी कहा था कि आज से जो भी व्यक्ति ब्रह्म मुहूर्त में यह महा स्नान करेगा उसे रूप की प्राप्ति होगी, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष. आज से संसार इस दिन को “रूप चतुर्दशी” के रूप में मनाएगा.