जब व्यक्ति की उम्र 50 वर्ष हो जाती है तो उसे एहसास होने लगता है कि अब मैं बूढ़ा हो रहा हूं. इसके बाद समय के साथ बुढ़ापा व्यक्ति पर हावी हो जाता है, 70 बरस तक तो व्यक्ति अपने मन में यह धारण कर चुका होता है कि मैं बूढ़ा हो गया हूं.
यह वह समय है जब व्यक्ति या तो चारपाई जेल चुका होता है या दवाइयों के डिब्बे लेकर घूम रहा होता है. कभी भी बीपी कभी शुगर हर दिन कोई नई– नई बीमारी सामने आती रहती है. ऐसी अवस्था में व्यक्ति यदि 10 मिनट की वॉक करने भी निकल जाए तो उसे ऐसा लगता है कि वह अपने स्वास्थ्य के प्रति बेहद सजग है. क्योंकि इस समय तक ज्यादा चलना थोड़ा मुश्किल होता है.
अगर बात की जाए 90 वर्ष की अवस्था की तो 90 वर्ष की अवस्था में तो चलना लगभग नामुमकिन है. तो ऐसे में क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि 90 वर्ष की अवस्था में एक बूढ़ा व्यक्ति किलोमीटर तक बिना रुके लगातार दौड़ लगाएं?
क्या आपने कभी ऐसा कोई व्यक्ति अपने आसपास देखा है? अवश्य ही आप में से ज्यादातर लोग यही सोचेंगे कि हमने ऐसा कोई व्यक्ति नहीं देखा है, लेकिन राधा रानी और ठाकुर जी की कृपा में नगरी में एक संत ऐसा कार्य करके दिखा रहे है, जिससे शायद आपको आश्चर्य हो.
आइए जानते हैं इस “महात्मा” की कहानी :– हम उस जिन महात्मा के बारे में बात करने जा रहे हैं उन महात्मा का असल नाम तो हमें नहीं मालूम. वास्तव में यह महात्मा संत अपना परिचय किसी को नहीं देते हैं. लेकिन लोग इनकी गति के कारण इनको “अनुव्रत महाराज” कह कर बुलाते हैं. अब इनका असल नाम क्या है यह तो कोई नहीं जानता!
अनुव्रत महाराज जी लगभग 90 वर्ष की अवस्था के हैं. कई वर्षों से यह महाराज जी वृंदावन में ही देखे जाते हैं, यानी कि महाराज राधा रानी और ठाकुर जी के परम भक्त हैं. ज्यादातर समय राधा रानी और ठाकुर जी की भक्ति में ही बिताते हैं. इसके अलावा ये वृंदावन के परिक्रमा पथ पर परिक्रमा भी लगाते हैं. कई सालों से लोग हैं यहां परिक्रमा लगाते हुए देखते हैं.
दौड़ते हुए लगाते हैं परिक्रमा :– अनुव्रत महाराज जी वृंदावन के परिक्रमा पथ पर चलकर नहीं बल्कि दौड़ते हुए परिक्रमा लगाते हैं. जिस स्थान से यह दौड़ना शुरू करते हैं वहां से किलोमीटर तक यह दौड़ता रहते है.एक हाथ में पोटली, एक हाथ में त्रिशूल उसमें प्रज्वलित अग्नि जिसमें धूपबत्ती साथ लिए महाराज जी निरंतर अपनी परिक्रमा पूर्ण करते हैं. यह जहां से दौड़ना शुरू करते हैं वहां के बाद 1 मिनट भी नहीं रुकते, निरंतर यह अपनी परिक्रमा पूर्ण करते हैं.
पैरों में चप्पल नहीं, शरीर पर पूरे कपड़े नहीं, दौड़ते दौड़ते इनका शरीर पसीने से लथपथ हो जाता है. लेकिन फिर भी अपनी भक्ति में लीन महाराज जी नहीं रुकते. महाराज जी जब भी दौड़ते हुए निकलते हैं तो आसपास के संत जन उन्हें खड़े होकर प्रणाम करते हैं. आसपास के संत जनों का कहना है कि महाराज जी कई वर्षों से अपनी तपस्या में है, साथ ही लोगों से बातचीत करने में उन्हें कोई रुचि नहीं है. अब 90 वर्ष की अवस्था में एक बूढ़ा शरीर इतना सक्रिय है, इसका आशय तो सीधा-सीधा राधा रानी और ठाकुर जी की कृपा से है.