ज्वार बाजरे का प्रचलन भारत में सदियों से रहा है, यानी बेहद प्राचीन समय में भी भारत में बाजरे से पकवान बनाए जाते थे. एक समय हुआ करता था जब भारत में एक वक्त की रोटी बाजरे या ज्वार की ही बनाई जाती थी. लेकिन बीते कुछ 10 सालों में यह भारत में लोगों की प्लेटों से गायब हो गया.
बीते एक दशक में भारत में बाजरा और ज्वार का प्रचलन लगभग समाप्त हो गया. लेकिन अब देखा जा रहा है कि एक बार फिर लोगों का रुझान बाजरे और ज्वार की और बढ़ा है. स्वास्थ्य वैज्ञानिकों ने इसको लेकर एक बड़ी घोषणा भी की है कि बाजरे जैसे मोटे अनाजों का सेवन करना दुनिया के लिए वरदान साबित हो सकता है.
इन्हें “सुपर फूड” कहकर पुकारा जा रहा है. क्योंकि देखा जा रहा है कि बढ़ती आबादी के साथ कृषि क्षेत्र में कमी हुई है और लोगों ने भी खेती करनी छोडनी शुरू कर दी है. लेकिन बाजरा एक ऐसी फसल है जो बेहद कम उर्वर जमीन में भी कम कीटनाशकों के साथ उग सकता है.
यही कारण है कि भारत के राजस्थान में थार मरुस्थल जैसे कम उर्वर इलाके में भी बाजरा बहुतायत होता है. यह क्षेत्र भारत में बाजरे का सबसे बड़ा उत्पादक भी है. इस पानी की भी कम आवश्यकता होती है और यह तेज तापमान में भी अपने आप को जीवित रख सकता है.
गुणों के हिसाब से भी बाजरा बेहद पौष्टिक है. क्योंकि बाजरे में सर्वाधिक मधुमेह को नियंत्रित करने वाले गुण पाए जाते हैं. बाजरा अन्य किसी अनाज अपेक्षा सबसे ज्यादा शुगर लेवल कम करता है. इसके अलावा बाजरे में कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित करने वाले गुण भी बखूबी पाए जाते हैं. इसमें कैल्शियम और जिकं भी भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. सबसे बड़ी बात यह कि यह ग्लूटेन फ्री होता है.
वर्तमान में भारत में 8 करोड़ से ज्यादा मधुमेह के रोगी हैं, इसके अलावा प्रत्येक वर्ष लगभग 2 करोड लोगों की मौत हार्ट अटैक से हो रही है. ऐसे में भारत में कम उर्वर जमीन में भी बाजरे का ज्यादा उत्पादन करके कई गंभीर रोगों से बचाव किया जा सकता है. यह आपकी थाली में स्वाद के साथ-साथ पोषण भी ज्यादा बढ़ाता है, इसी वजह से बाजरे का प्रचलन अब विदेशों में बढ़ रहा है.