हर्ष और उल्लास के साथ रंग-बिरंगी पतंगों के साथ तिल और गुड़ का त्योहार मकर संक्रांति एक बार फिर आ चुका है. मकर संक्रांति बच्चों का सबसे फेवरेट त्योहार माना जाता है, क्योंकि उन्हें इस दिन बढ़िया-बढ़िया खाने को पकवान भी मिलते हैं और सुंदर सुंदर पतंगे भी उड़ाने को.
मकर संक्रांति मनाई भी देश के कोने कोने में जाती है. पंजाब में लोहड़ी के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है. वही असम क्षेत्र में इसे बिहू त्योहार कहा जाता है. दक्षिण भारत में इसे पोंगल के नाम से जाना जाता है. अतः स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि मकर संक्रांति मनाने की परंपरा ना केवल उत्तर भारत में बल्कि देश के सभी राज्यों में है.
क्या है मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व?
स्कंद पुराण के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य पौष मास से निकलकर धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है. मकर संक्रांति को ही सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश करता है. अतः कह सकते हैं कि मकर संक्रांति का त्योहार सूर्य और पृथ्वी की गति का त्योहार है.
स्कंद पुराण में वर्णन है कि मकर संक्रांति के दिन ही भगवान शिव और नारायण एक समय के लिए एक दूसरे का अभिन्न हिस्सा बनते हैं. मकर संक्रांति के दिन भगवान शिव और नारायण की शक्ति का सम्मेलन होता है.
इसके अलावा अग्नि पुराण में वर्णन है कि मकर संक्रांति एक ऐसा त्योहार है जब देवर्षि नारायण ने वैकुंठ में प्रवेश करने की अनुमति मांगी थी. लेकिन जब वह अनुमति लेते हुए तंग आ गए उन्होंने भगवान विष्णु से गुजारिश की कि वह कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे उन्हें वैकुंठ धाम में प्रवेश की अनुमति ना लेनी पड़े.
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मकर संक्रांति को दान क्यों करते है?
तब भगवान विष्णु ने देवर्षि नारायण से कहा की उन्हें 14 बार वैकुंठ धाम के चक्कर लगाते हुए दान देना है. कहा जाता है कि विष्णु भगवान के आज्ञा अनुसार देवर्षि नारायण ने चक्कर लगाते हुए दान पुण्य देने की शुरुआत की थी. इसीलिए कहा जाता है कि मकर सक्रांति के दिन दान करने का विशेष महत्व है.
मकर संक्रांति पर क्या दान करें?
मुख्य रूप से दान में अनाज और गर्म कपड़ों का महत्व बताया गया है. मकर संक्रांति के दिन भूखे को भोजन और ठंड से कांप रहे को कंबल प्रदान किया जाए तो इससे बड़ा दान और कुछ नहीं. मकर संक्रांति मनाने की परंपरा सदियों से हमारी संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है और यूं ही बनी रहेगी.