यूं तो भारत भूमि पर अनेक च’मत्कारिक संप्रदाय हुए हैं, जिन्हें विभिन्न समुदाय के लोग बड़ी श्रद्धा से मानते हैं. लेकिन राजस्थान के जसनाथी संप्रदाय की बात ही कुछ और है. इस संप्रदाय का इतिहास भी काफी रोचक है. इस संप्रदाय को मानने वाले मुख्य रूप से जाट हैं. वर्तमान में इस संप्रदाय के भक्त जोधपुर, बीकानेर और नागौर से तालुकात रखते हैं.
श्री जसनाथ जी महाराज का जन्म :– इतिहास के अनुसार इस संप्रदाय के संस्थापक जसनाथ जी विक्रम संवत 1539 अर्थात 1482 ईस्वी में इस धरा पर आए थे. बताया जाता है कि उनका जन्म नहीं हुआ था, बल्कि बीकानेर के कतरियासर गांव के जागीरदार हमीर जाट को रात में सपना आया था कि इस गांव की उत्तर दिशा में तालाब किनारे एक बालक बैठा है.
सुबह जब हमीर जाट तालाब किनारे पहुंचे तो उन्होंने पाया कि सचमुच यहां एक बालक है. जिसके बाद हमीर जाट उसे अपने घर लेकर गए क्योंकि वह नि:संतान थे. उसके बाद ही जसनाथ जी का पालन पोषण हमीर जाट और उनकी पत्नी रूपादे ने किया था.
धधकते अंगारों पर नाचने की प्रथा :– गुरु जसनाथ जी महाराज ने इस संप्रदाय में 36 नियमों का निर्धारण किया है जिनका पालन करना आवश्यक है. सबसे खास बात यह है कि इस संप्रदाय के लोग अग्नि नृत्य करते हैं. यह नृत्य केवल पुरुष करते हैं और फ्ते-फ्ते का उच्चारण करते हुए अग्नि पर नाचते हैं, नृत्य के साथ ही अंगारों को अपने मुंह में भी लेते हैं.
जसनाथी संप्रदाय में भगवाधारी लोगों को सिद्ध कहा जाता है. सभी भगवान शिव के अनन्य भक्त होते हैैं. सबसे खास बात यह है कि जसनाथ जी महाराज के च’मत्कारों से प्रभावित होकर दिल्ली सल्तनत के सुल्तान सिकंदर लोदी ने जसनाथ जी को कतरियासर में 500 बीघा जमीन भेंट की थी. सिकंदर लोदी जसनाथ जी से बेहद प्रभावित था.
जसनाथ जी महाराज गुरु गोरखनाथ के चेले थे और उन्होंने गोरखमालिया नामक स्थान पर 12 वर्षो तक तपस्या की थी. जसनाथ जी महाराज सदैव अटल ब्रह्मचारी रहे और महज 24 वर्ष की अवस्था में इन्होंने जीवित समाधि ली थी. अपने अल्प जीवन काल में भी उन्होंने इतने च’मत्कार किए जिनके साक्षात प्रमाण आज मौजूद है.