इस बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि आज कल की दुनिया सिर्फ पैसे के लिए दौड़ती है, ईश्वरी शक्ति का तो उन्होंने ऐसा मजाक बनाया है जैसे वह मौजूद ही नहीं है. भगवान के सच्चे भक्त दुनिया में कम ही देखने को मिलते हैं, पैसों के लिए लोग अपना जमीर बेचने को तैयार हैं.
लेकिन छत्तीसगढ़ के एक परिवार ने ऐसा कमाल कर दिखाया है जो दुनिया के लिए एक उदाहरण है, एक ऐसा उदाहरण जो दिखाता है कि केवल धन किसी भी मनुष्य के लिए पर्याप्त नहीं है.
हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के डाकलिया परिवार की. इस परिवार में धन धान्य की कोई कमी नहीं थी, इनका दवा का पारिवारिक बिजनेस काफी कुशल चल रहा था. इनके पास संपत्ति भी करोड़ों की थी, जिसमें पूरा परिवार जिंदगी भर ऐसो आराम से मजे कर सकता था. लेकिन इस पूरे परिवार में धन के बजाय रास्ता चुना वैराग्य का.
इन्होंने अपनी कुल 30 करोड़ की संपत्ति दान करके संयम पूर्ण जीवन जीने का फैसला कर लिया है. डाकलिया परिवार के मुख्य भूपेंद्र डाकलिया है और उनकी पत्नी के अलावा परिवार में उनके दो बेटे और दो बेटियां हैं.
दीक्षा की घोषणा करने के बाद परिवार के पांच सदस्यों ने एक साथ दीक्षा ले ली जबकि एक सदस्य की तबीयत ठीक नहीं होने के कारण 5 फरवरी को उसकी दीक्षा होगी.
भूपेंद्र डाकलिया ने बताया कि उन्होंने पहले कभी दीक्षा लेने का नहीं सोचा था लेकिन 2011 में उनका परिवार रायपुर की कैवल्यधाम पहुंचा जहां उनके सबसे छोटे उस वक्त के 6 वर्षीय हर्षित के मन में दीक्षा का विचार आया. छोटा सा वह बच्चा बार-बार दीक्षा लेने के बाद कर रहा था जिसके बाद धीमे-धीमे यह विचार चारों बच्चों के मन में आ गया.
पहले उन्हें लगा कि जब बच्चे बड़े होंगे तो उनके मन से यह विचार शायद ढल जाएगा लेकिन 10 वर्ष के समय काल में भी वह अपने फैसले पर अडिग थे, जिस वजह से पूरे परिवार ने दीक्षा लेने की आपसी सहमति बनायी और अपनी संपत्ति दान करके वैराग्य का जीवन चुन लिया.