भगवान शिव की भक्ति किस प्रकार करनी है? इस प्रश्न का उत्तर एक कहानी के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं. पुसलार भगवान शिव का एक अनन्य भक्त था. वह भगवान शिव की भक्ति में इस तरह डूबा था कि उसे बाहरी दुनिया से मानो कोई लेना देना ही नहीं था. लेकिन फिर भी वह बहुत गरीब था और भिक्षा मांग कर खाना खाता था.
पुसलार के राज्य का राजा बेहद दयालु और महिमामय था. वह भगवान शिव की आराधना के लिए एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाना चाहता था. अपनी इच्छा अनुसार उसने काफी धन खर्च करके एक विशाल शिव प्रतिमा का निर्माण करवाया जो देखने में बेहद भव्य और सुंदर थी. महीनों की मेहनत के बाद जब राजा की इच्छा का मंदिर बनकर तैयार हो गया तो उसके उद्घाटन की तैयारी की गई. उद्घाटन से एक दिन पहले रात्रि को जब राजा सोया हुआ था तब ही उसे सपना आया और सपने में उसे भगवान शिव के दर्शन हुए.
सपने में शिव राजा से कह रहे थे कि कल मैं तुम्हारे बनाए हुए मंदिर में नहीं आऊंगा क्योंकि मुझे पुसलार के मंदिर में जाना है. राजा नहीं जानता था कि पुसलार कौन है? लेकिन वह यह जानकर भी काफी आ’श्चर्य में डूबा था कि सपने में उसे भगवान शिव ने दर्शन दिए हैं. दूसरे दिन सुबह उन्होंने इस बात की खोज निकाली कि क्या इस राज्य में वास्तव में कोई पूसलार नामक व्यक्ति रहता है?
जब राजा को पता चला कि हां वास्तव में यहां कोई ऐसा व्यक्ति है तब वह उसकी खोज में निकल गए. काफी समय बाद राजा को उसका पता मालूम हुआ और वह उससे मिलने जंगल में पहुंचे. वहां जाकर राजा ने देखा कि एक छोटी सी झोपड़ी में एक गरीब साधु बैठा है.
राजा ने पूछा कि क्या तुम ही पूसलार हो ? साधु ने जवाब में हां कहा. तब राजा ने कहा कि मैं आपके शिव मंदिर का दर्शन करना चाहता हूं क्योंकि मैंने कल सपने में देखा कि आपका शिव मंदिर इतना अच्छा है कि भगवान मेरे मंदिर में आना ही नहीं चाहते.
पूसलार थोड़ा संकोच में पड़ गया क्योंकि वह समझ नहीं पा रहा था कि इसका क्या जवाब दिया जाए! लेकिन उसने कहा हे राजन! मेरे पास आपकी तरह कोई पत्थरों से बना हुआ मंदिर नहीं है. मेरे पास कोई वास्तविक भौतिक मंदिर है ही नहीं.
मैंने तो केवल अपने मन में ही भगवान शिव के लिए एक भव्य मंदिर का सोच रखा है और मैं अपने मन के मंदिर में ही शिव की आराधना करता हूं. पूसलार ने आगे कहा कि यदि भगवान शिव आप के मंदिर में प्रवेश नहीं करना चाहते हैं तो इसका आशय यह हुआ कि कहीं ना कहीं आपकी श्रद्धा में कमी है.
राजा वहां से निकल आया लेकिन उसे यह बात अच्छे से समझ में आ गयी कि भगवान की भक्ति करने के लिए किसी बाहरी धन की आवश्यकता नहीं होती. शिव की पूजा के लिए चिंता की नहीं चेतना की आवश्यकता होती है. मतलब साफ है यदि ईश्वर को हम अपने जहन में नहीं ढा़लते हैं और अपने शरीर की संपूर्ण ऊर्जा उन्हें जानने के लिए नहीं लगाते हैं तो कोई भी सुंदर मंदिर में या स्वादिष्ट भोजन में उनका वास नहीं हो सकता.