14 फरवरी 1957 को पर्दे पर रिलीज़ हुई “मदर इंडिया” की सफलता का तो क्या कहना! बहुत से लोग यह जानते होंगे कि मदर इंडिया उस दौर की सफलतम फिल्मों में शुमार थी और शायद इस फिल्म की टक्कर आज भी कोई फिल्म नहीं कर सकती.
कारण यह है कि जहां आज की फिल्मों में हीरो हीरोइन के रोमांस को मद्देनजर रखते हुए सारी कहानी को उसके इर्द-गिर्द घुमाया जाता है. मदर इंडिया में ऐसा कुछ भी नहीं था. मदर इंडिया कहीं ना कहीं हमारे समाज के औरतों की कहानी बयान करती है.
यही कारण रहा कि सभी भारतीय फिल्मों में से केवल मदर इंडिया ही एक ऐसी फिल्में रही है जो ऑस्कर के सबसे करीब पहुंची थी. बद-किस्मती की बात रही कि इतने करीब पहुंचने के बाद भी मात्र एक अंक से यह ऑस्कर जीतने से चूक गयी.
अभिनेत्री नरगिस, अभिनेता सुनील दत्त, राजेंद्र कुमार, कन्हैया लाल और राजकुमार के अभिनय से भरपूर इस फिल्म को उस दौर के मशहूर डायरेक्टर महबूब खान ने डायरेक्ट किया था. खास बात यह भी थी कि यह फिल्म पहले दिलीप कुमार को ऑफर की गई थी लेकिन उन्होंने इसको रिजेक्ट कर दिया था.
जिसके बाद इस फिल्म में लीड रोल में नरगिस और सुनील दत्त दिखाई दिए. यह फिल्म मूल रूप से 1940 में आई फिल्म औरत का रिमेक था, हालांकि फिल्म “औरत” भी महबूब खान ने ही डायरेक्ट की थी. महबूब खान फिल्म औरत को बड़े पैमाने पर दर्शकों के सामने लाना चाहते थे इसीलिए उन्होंने उस दौर की सबसे महंगी फिल्म मदर इंडिया का निर्माण किया था.
बताया जाता है कि मदर इंडिया फिल्म बनाने का आइडिया महबूब खान को तब आया जब वह अमेरिकी लेखक की किताब द गुड अर्थ और द मदर पढ़ रहे थे. इसी के बाद महबूब खान ने प्रकृति से जुड़ी हुई एक औरत की कहानी पेश करने का निर्णय लिया था. फिल्म मदर इंडिया एक ऐसी औरत की कहानी बताता है जिसने जिंदगी में खूब प्रताड़ना सही लेकिन अंत तक वह मजबूती से खड़ी रही है और हमेशा उसने गलत का विरोध किया.
खास बात यह भी है कि फिल्म मदर इंडिया को भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के लिए भी स्पेशल स्क्रीन किया गया था. एकमात्र ऐसी फिल्म थी जिससे भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने एक साथ बैठकर देखा था.