सेना के कई जवानों के वीरता के किस्से तो हम आए दिन सुनते ही है. ये तो हमारी सेना का आभार है जिनकी कड़ी मेहनत की वजह से शांति से नींद ले पाते है, नहीं तो दुश्मन तो ताक लगाकर ही हमले करने की फिराक में रहता है. जवानों की कड़ी मेहनत का कोई जवाब नहीं लेकिन अमर शहीद अमरीश त्यागी की कहानी कुछ इस प्रकार से है की हर किसी की आंखें भर आयेगी.
मूल रूप से उत्तरप्रदेश के मुरादनगर के हिमाली गांव के सैनिक अमरीश त्यागी सेना के पर्वतारोही दस्ते में थे. वे वर्ष 1995 में सेना में भर्ती हुए थे, जहां कारगिल युद्ध के दौरान 1999 में उनकी पोस्टिंग लदाख आवंटित हुई थी. अमरीश वायुयान से कूदने में माहिर थे.
23 अक्टूबर 2005 को अपने तीन साथियों के साथ हिमालय की ऊंची चोटी संतोप्पंत से उन्होंने तिरंगा लहराने के यात्रा की थी जिस दौरान वापसी आते समय वे तीनों साथी अरसिल की खाई में जा गिरे. इस दौरान उनके बाकी दो साथियों की देह तो बरामद हुई लेकिन उनका शरीर बर्फ के नीचे से नहीं मिला.
घटना की खबर जब उनके परिवार वालो को मिली तो उनके पैरो तले जमीन खिसक गई, उन्होंने अपने पुत्र को मृत मानने से इनकार कर दिया. लेकिन जब 1 साल तक उन्हें कोई समाचार नहीं मिला तो उन्होंने अपने पुत्र के अंतिम दर्शन की बार बार मांग की जो की उनकी इच्छा पूरी नहीं हुई.
कुछ समय में उनके बूढ़े माता–पिता का तो निधन हो गया लेकिन उनके अन्य भाई बार–बार मांग उठाते रहे. हाल ही में 12 सितंबर को 25 सदस्य एक दस्ता उत्तर काशी से हिमालय की चोटी पर किसी खोजी मिशन पर कार्यरत थे, इस दरम्यान उनको बर्फ के नीचे एक शव बरामद हुआ. बर्फ के नीचे दबने के कारण शरीर नष्ट नहीं हुआ, हालांकि चेहरे से शिनाख्त नहीं हो सकती थी.
जब शव की तलाशी ली गई तो उन्हें कुछ कागजी दस्तावेज बरामद हुए जहां से उनकी शिनाख्त अमरीश त्यागी के रूप में हुई. इस बात की सूचना जब उनके घरवालों को दी गई तो उनके भाई फफक पड़े, उनका कहना है की उनके माता–पिता इस इंतजार में चल बसे लेकिन उनकी ये इच्छा पूरी नहीं हुई.
जब भाई लौटकर आया है तब तक बहुत देर हो चुकी है, हालांकि देह को उनके घरवालों को सम्मान सहित सुपुर्द कर दिया गया है, लेकिन ये उनके लिए एक कठिन मोड़ है.