वर्तमान में चारों तरफ कोयले की कमी से आए बिजली संकट की चर्चा जोरों पर है. कोई कह रहा है कोयला नहीं है तो क्या दूसरे साधन तो है, कोई कह रहा है यदि कोयला खत्म होने वाला है तो दूसरे देशों से खरीद लो. वास्तव में दोनों ही स्थितियां कठिन है.
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क्योंकि कोयला एक बहुत बड़ी मात्रा में प्रदूषण फैलाता है, और आजकल हमारी मुख्य समस्या प्रदूषण बनता जा रहा है. ऐसे में पश्चिम के देश का भारत से लगातार आग्रह कर रहे हैं कि वह अपनी कोयला खपत कम करें और ऊर्जा के दूसरे साधन अपनाएं. लेकिन भारत सरकार ऐसा करें भी तो कैसे?
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भारत एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, इसके अलावा भारत विश्व की तीसरी ऐसी अर्थव्यवस्था है जो बड़े पैमाने पर जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है. वास्तव में भारत में कुल बिजली का 70% उत्पादन तो केवल कोयले से ही होता है. इसलिए सभी जीवाश्म ईंधन में से कोयला हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है.
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हम कोयले से अपनी निर्भरता एकदम से नहीं हटा सकते क्योंकि भारत में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 40 लाख से भी ज्यादा लोग अपना रोजगार प्राप्त करते हैं. भारत में कोयला मुख्य रूप से झारखंड, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ से निकाला जाता है. हम सभी जानते हैं कि तीनों ही राज्य कोई विशेष विकसित नहीं है.
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तीनों राज्यों में लगभग हर कोई कोयले के व्यवसाय से ही जुड़ा हुआ है, तो आप स्वयं सोचिए कि यदि एकदम से ही यह व्यवसाय खत्म हो जाएगा तो कितने लोगों को भूखे मरने की स्थिति में डाल देगा? भारत और वैसे भी लगातार बेरोजगारी से जूझ रहा है ऐसे में समाज के इतने बड़े तबके को बेरोजगार किया जाना संभव नहीं है.
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कोयला इसलिए भी लगातार कम हो रहा है क्योंकि पिछले 10 सालों में कोयले की खपत दोगुनी से भी ज्यादा हो चुकी है. यह ऊर्जा का नवीनीकरण संसाधन भी नहीं है वापस बन जाए. यह हमारी अर्थव्यवस्था का एक बड़ा आधार है क्योंकि हम बढ़िया क्वालिटी का कोयला आयात कर देते हैं जिससे हमारी अर्थव्यवस्था में एक सहारा पैदा होता है.
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हालांकि सरकार लगातार ऊर्जा के नवीनीकरण संसाधनों पर काम कर रही है, लेकिन ऊर्जा के नवीनीकरण संसाधनों पर 100% निर्भर हो जाए ऐसी स्थिति की कल्पना अभी 20 साल भी नहीं की जा सकती है. भारत सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक हम लगभग 40% ऊर्जा संसाधन नवीनीकरण रूप में ले आएंगे लेकिन अभी वह दिन भी दूर है.
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हालांकि हम ऊर्जा के नवीनीकरण संसाधनों का उपयोग लगातार बढ़ा रहे हैं, इसका सबसे बढ़िया उदाहरण दिल्ली मेट्रो है. दिल्ली मेट्रो में 60% से भी ऊर्जा केवल सौर ऊर्जा से आती है. तो सोचिए कितना सुखद होगा वह दिन जब हम केवल प्राकृतिक तरीके से ही अपनी उर्जा की जरूरतें पूरी कर लेंगे!
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लेकिन भारत एक विकासशील राष्ट्र है जिसकी कोरोना ने बुरी तरह से कमर तोड़ दी है. रिपोर्ट्स के मुताबिक यदि भारत में ऊर्जा के नवीनीकरण संसाधनों का विकास बढ़ाना है तो इसमें अंतरराष्ट्रीय निवेश बढ़ाने की ज्यादा जरूरत है. क्योंकि जिस हिसाब से हम अन्य संसाधनों से उर्जा ले रहे हैं वह हमारी मांग के हिसाब से अपर्याप्त है.
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अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा समिति की रिपोर्ट के अनुसार 2020 तक हमें हमारी आज की जरूरत से दोगुने से भी ज्यादा ऊर्जा की आवश्यकता होगी. ऐसी स्थिति में चिंता का विषय यह है कि कोयला भंडार तो लगातार कम हो रहे हैं और ऊर्जा के दूसरे संसाधन सुचारू रूप से काम नहीं कर रहे हैं तो हम अपनी जरूरत पूरी कैसे करेंगे?
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एकदम से इतने बड़े तबके को बेरोजगार नहीं किया जा सकता क्योंकि उड़ीसा झारखंड और छत्तीसगढ़ तीनों में ही लोगों का जीवन स्तर बेहद गरीब है. दूसरे राज्यों की तुलना में इनके लोग आज भी अभाव में जीवन व्यतीत कर रहे हैं तो इतने बड़े तबके को सरकार मुआवजा भी कैसे देगी? अभी की हाला स्थिति को देखते हुए तो यही लगता है कि भारत में कोयला मुक्त स्थिति अभी काफी दूर है.
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यदि सरकार नवीनीकरण संसाधन पर लगातार काम करें तो सरकार को यह भी चाहिए कि वह दूसरे क्षेत्रों में लोगों को रोजगार के उचित अवसर प्रदान करें. यदि लोग दूसरे क्षेत्रों में रोजगार पाने लग जाएंगे तो अपने आप ही इनकी कोयला पर से निर्भरता खत्म हो जाएगी. कोयला उपयोग ना करने से प्रदूषण का स्तर भी गिरेगा जो कि एक स्वच्छ वातावरण का निर्माण करेगा.