मनुष्य जीवन में समय कभी एक सा नहीं होता, आज जो करोड़पति है भविष्य में संभावना है कि उसके पास कुछ भी ना बचें. लेकिन आज उसके पास कुछ नहीं है यदि वह सम्यक मेहनत करता है तो भविष्य में उसके पास बहुत कुछ होने की अप्रतिम संभावनाएं होती है. ऐसा ही एक उदाहरण है मणिपुर की रहने वाली मोईरांगथोम धाम मुक्ता मणि देवी. जिन्होंने अपने जीवन में संघर्ष की सीमा को पार किया जो एक सफल मनुष्य बनने के लिए आवश्यक है.
इनका नाम बुक ऑफ अचीवर्स में भी शामिल है. इस पुस्तक के अनुसार दिसंबर 1958 में पैदा हुई मुक्ता मणि के पिताजी काफी कम अवस्था में चल बसे थे उनकी विधवा मां ने उनका पालन पोषण किया था. आर्थिक तंगी के चलते मात्र 16 वर्ष की अवस्था में ही मुक्तामणि की शादी करवा दी गई.
अब आगे का जीवन अच्छे से काटना भी उनके लिए एक बड़ा संघर्ष था और वह इसके लिए खेती करती थी. खेती के अलावा और सब्जियां भी देश की थी और स्वयं बुनकर झोले और हेयर बैंड जैसी चीजें भी बेचा करती थी.
उनकी पारिवारिक स्थिति काफी खराब थी और अगर बात करें 80 के दशक की तो उस समय उनके पास अपने बच्चों की जरूरतें पूरी करने के लिए भी पर्याप्त पैसे नहीं थे. एक किस्सा उनके जीवन में है 1989 का जब उनकी छोटी बेटी के जूते फट गए थे. उनके पास नए जूते खरीदने के लिए पैसे नहीं थे और उनकी बेटी फटे हुए जूते पहनकर स्कूल जाने से मना कर रही थी.
जिसके बाद मुक्तामणि ने अपनी बेटी के फटे हुए जूतों को सिल दिया. मुक्ता मणि की बेटी सोच रही थी कि इस बात पर उसे डांट पड़ने वाली है लेकिन यह घटना उसके जीवन में ऐतिहासिक साबित हुई. जब मुक्ता मणि की बेटी स्कूल पहुंची तो टीचर ने उससे पुछा कि यह सिलाई किसने की है?
इसके बाद मुक्तामणि की सिलाई और कढ़ाई काफी फेमस होने लगी और 1990 में उन्होंने मुक्ता सूट इंडस्ट्रीज की स्थापना कर दी. उन्होंने लोगों को जूते और कई अन्य वस्तुएं बुनने का प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया. जानकारी के अनुसार अब तक उन लोगों ने कुल 1000 से ज्यादा लोगों को इसका प्रशिक्षण दिया है.
आज उनके बुने हुए जूते और अन्य वस्तुएं ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम, मेक्सिको और अफ्रीका के कई देशों में फेमस है. एक्सपोर्ट के जरिए वह करोड़ों कमा रही है. उनके इस कड़े संघर्ष के कारण अब 26 जनवरी 2022 को 73 वें गणतंत्र दिवस के दिन मुक्तामणि का नाम पदम् पुरस्कारों की लिस्ट में शामिल हो गया और उन्हें पद्मश्री से नवाजा गया.