हाल ही में मशहूर टूथपेस्ट सेंसोडाइन के टीवी विज्ञापनों पर 7 दिन के भीतर ही प्रतिबंध लगाने के आदेश पारित हो गए हैं. ऐसा होने के पश्चात विज्ञापन जगत में एक प्रकार की ख’लबली मच गई है और हर कोई यह जानना चाहता है कि आखिर इस रोक का क्या कारण है? ऐसा होने से कंपनी पर जुर्माना लगाए जाने की बात भी हो रही है.
अगर बात करें की सेंसोडाइन कंपनी के असल मालिकों की तो आपको बता दें कि यह कोई भारतीय कंपनी नहीं है. सेंसोडाइन टूथपेस्ट को बनाने वाली कंपनी का नाम है GSK जो मूल रुप से यूनाइटेड किंग्डम की एक कंपनी है. सेंसोडाइन टूथपेस्ट के अलावा इस कंपनी के भारतीय बाजार में और भी अनेकों प्रोडक्ट्स है जैसे ओट्रीविन, ईनो, क्रोसिन और हॉर्लिक्स.
क्यों लगाई गई है रोक?
यह कंपनी दावा करती है कि इस टूथपेस्ट के प्रयोग करने के कुछ ही दिनों बाद दांतों से हर प्रकार की झनझ’नाहट खत्म हो जाती है. यह कंपनी बताती है कि इसके प्रयोग करने के पश्चात आप हर प्रकार का ठंडा, गर्म और स्वादु भोजन ले सकते हैं.
अपने विज्ञापनों के लिए सेंसोडाइन टूथपेस्ट कई ऐसे डॉक्टर्स के चेहरों का भी प्रयोग लेते हैं जो इस पेस्ट को रिकमेंड करते हुए नजर आते हैं. बड़े ही वास्तविक तरीके से यह डॉक्टर्स बताते हैं कि किस प्रकार से इसका प्रयोग करने से ग्राहक लाभान्वित हो सकता है!
लेकिन इन सभी विज्ञापनों पर निगरानी रखने वाली एजेंसी का यह कहना है कि सेंसोडाइन टूथपेस्ट जिन डॉक्टरों की रिकमेंडेशन लेता है वह मूल रूप से भारतीय डॉक्टर नहीं है. उनका यह भी कहना है कि अधिकतर विज्ञापनों में उन डॉक्टर को दिखाया गया है जो अभी तक विदेशों में अपनी पढ़ाई पूरी कर रहे हैं.
इस प्रकार से इन डॉक्टर का सहारा लेकर विज्ञापन जगत को जब’रदस्ती सही ठहराने की कोशिश की जा रही है. यह ग्राहकों के साथ एक प्रकार का धोखा समझा जाना चाहिए क्योंकि यदि कंपनी ऐसा दावा करती है तो उसकी यह जिम्मेदारी है कि वह अपने इस गुण को सबके सामने प्रस्तुत करके दिखाएं. एजेंसी का दावा है कि टूथपेस्ट के दावे भ्रामक पाए गए हैं और इनका प्रयोग ग्राहकों को एक प्रकार से उल्लू बनाने के लिए किया जा रहा है.