टाटा ने सरकार से कितने में ख़रीदा एयर इंडिया को? पढ़े पूरी खबर..

बीते दिनों केंद्र सरकार ने एयर इंडिया की नीलामी तय कर दी थी जिसके बाद एयर इंडिया के कई बड़े खरीदार सामने आए.
जिसके बाद केंद्र सरकार ने टाटा ग्रुप के मालिक रतन टाटा को एयर इंडिया की कमान सुपुर्द की. जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार ने रतन टाटा को 18 हजार करोड धनराशि के साथ एयर इंडिया की कमान सौंपी है.

सरकार के साथ कुछ विशेष सदस्यों से हुई कॉन्फ्रेंस में उन्होंने बताया कि दिसंबर तक यह डील पक्की कर ली जाएगी इसके लिए टाटा ग्रुप को पहले सरकार को 2700 करोड़ कैश देने होंगे. यानी टाटा ग्रुप इसे 15 हजार 300 करोड़ के लोन पर खरीदेगा, जिसे कल किस्तों में उसे सरकार को चुकाना होगा. इसी के साथ टाटा ग्रुप को कार्गो हैंडल कंपनी AIS और ATS की भी आधी हिस्सेदारी दे दी जाएगी. दिसंबर तक धन राशि चुकाने के बाद यह डील क्लोज कर ली जाएगी.

आखिर क्यों बेचा सरकार ने एयर इंडिया को?–
केंद्र सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक एयर इंडिया कई सालों से बेहद घाटे में चल रही थी जिससे देश में कोरोना काल से कमजोर हुई अर्थव्यवस्था को एक बड़ी हानि हो रही थी. कई बार कई योजनाओं के तहत इसकी आय को बढ़ाने की कोशिश भी की गई लेकिन यह लगातार घाटे में ही चल रही थी.

इसलिए लंबे समय से सरकार एयर इंडिया से पीछा छुड़ाना चाहती थी जिसके बाद वह लगातार एक अच्छे सौदे में इसे बेचने की कोशिश में थी. आखिरकार सरकार ने टाटा ग्रुप को इसकी कमान सौंप दी है. जानकारी के लिए बता दें एयर इंडिया को टाटा ग्रुप के संस्थापक जमशेदजी टाटा ने ही शुरू किया था जिसके बाद उन्होंने इसका लंबे समय तक संचालन भी किया. लेकिन माननीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के समय 1953 में एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया था.

क्यों हुआ था राष्ट्रीयकरण–
आजादी के 1 नए सूर्य के बाद में पंडित जवाहरलाल नेहरू एक विकसित भारत का सपना देखते थे जिसके बाद उन्होंने कई बड़ी योजनाएं देश में लाने की कोशिशें की थी इसीलिए उन्होंने एयर इंडिया को भी राष्ट्रीय संपत्ति में शामिल किया ताकि उनके भारतीय हवाई यात्राओं का राष्ट्रीय आनंद ले सके. हालांकि अब एयर इंडिया भारत सरकार की नहीं रही.

कई लोगों ने इस पर आलोचनाएं भी की है लेकिन केंद्र सरकार ने इसे पूरी तरह से घाटे का सौदा बता कर इसको बेचने में ही समझदारी दिखाई है.‌ कई लोगों का यह भी कहना है कि अभी तक भी भारत एक विकासशील राष्ट्र ही है वैसे मैं राष्ट्रीय संपत्तियों का बेचना ठीक नहीं है, जहां आज भारत में एक के बाद एक नई चीजों का राष्ट्रीयकरण होना चाहिए था वैसे में यह निजीकरण क्यों?