भारतीय कोयला संकट से चीनी अर्थव्यवस्था क्यों प्रभावित, कैसे खत्म होगा यह बिजली संकट?-

देशभर में कोयला संकट की चर्चा जोरों पर है. बीते दिनों से कोयले में आई तंगी से भारत जूझ रहा है. कोयले की इस कमी का स्पष्ट प्रभाव चारों तरफ देखा भी जा सकता है घरेलू बिजली में सरकार ने कटौती शुरू कर दी है. भारत में लगभग 135 पावर प्लांट जो कि कोयले से चलते हैं उनमें से आधे से ज्यादा में कोयला खत्म होने की कगार पर है. बाकी पावर प्लांट में कोयला मात्र कुछ ही दिनों का शेष रह गया है.

लंबे समय से कोरोनावायरस की वजह से हमारी अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई है. हाल ही में कुछ महीनों से भारतीय अर्थव्यवस्था में वापस प्रगति चालू कीजिए कि हमारे ऊपर कोयला संकट ने अपना कहर बरसा दिया. भारत अपनी घरेलू और आर्थिक बिजली का लगभग 70% भाग कोयला से ही प्राप्त करता है. इसके अलावा कोयले का निर्यात करके हमारी अर्थव्यवस्था को अच्छा लाभ पहुंचता है.

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लेकिन वर्तमान में कोयले की कमी के कारण भारत में कोयला निर्यात में कमी अवश्य रूप से हो जाएगी. देश अपनी जरूरत की बिजली भी प्राप्त नहीं कर पा रहा ऐसे में कोयला बेचकर लाभ प्राप्त करने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता है. भारतीय कोयला संकट से चीनी अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है. भारत में आए इस संकट का प्रभाव चीन में भी देखा जा सकता है.

आखिर चीन में इसका प्रभाव पड़ रहा है?- जैसा कि हम जानते हैं कि भारत अपनी कुल बिजली का लगभग 70% हिस्सा कोयले से ही प्राप्त करता है. ऐसे में भारत दूसरा ऐसा देश है कार्बनिक पदार्थों पर सबसे ज्यादा निर्भर है. आप यह सुनकर चौंक जायेंगे कि हमारा पड़ोसी देश चीन अपनी घरेलू बिजली का एक बड़ा हिस्सा कोयले से ही प्राप्त करता है.

जानकारी के मुताबिक चीन में 61% बिजली के उत्पादन का आधार कोयला ही है. दुनिया के संपूर्ण कोयला भंडार में आधे से ज्यादा भंडार का उपयोग अकेला चीन ही करता है. हालांकि दुनिया में चीन से भी ज्यादा कोयले का उपयोग करने वाले देश मौजूद हैं. यदि बात की जाए ऐसे देशों की दक्षिण अफ्रीका को बोत्सवाना देश अपनी बिजली जरूरत का 99% हिस्सा केवल कोयले से ही प्राप्त करता है.

इसके अलावा भी कई यूरोपियन देश जैसे कि पोलैंड आदि में भी लगभग 95% बिजली की निर्भरता कोयले पर है. लेकिन हाल ही में छाई कमी की वजह से मांग लगातार बढ़ रही है और उत्पादन में भयंकर कमी आ रही है. इसके कारण हैं जिनमें इस वर्ष लगातार हुई बारिश भी एक है.

अपनी अधिक मांग के चलते विदेशों में ऐसे अनेक पावर प्लांट में निवेश करता है जो कि कोयले से चलते हैं. बदले में बिजली की आपूर्ति करते हैं और चीन उन्हें चलाने के लिए पैसे देता है. भारत में भी ऐसे कई प्लांट मौजूद है. चीन में ऐसी कई हैवी टेक्निकल फैक्ट्रियां हैं जहां भारी-भरकम मात्रा में कोयले से उत्पादित होने वाली बिजली का उपयोग किया जाता है. इनके अलावा घरेलू बिजली में भी कोयला अहम भूमिका निभाता है.

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विशेषज्ञों का कहना है कि कोयला मुक्त भारत की स्थिति अभी दूर है. इसका कारण यह है कि भारत में कोयला उद्योग से लाखों लोग अपना रोजगार प्राप्त करते हैं और इतनी जल्दी किसी दूसरे संसाधन से बिजली बनाना आसान काम नहीं होगा. तो क्या चीन में भी ऐसा ही होगा?

रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में घोषणा की थी की इस साल से चीन अब विदेशी कोयला प्लांट में निवेश नहीं करेगा. ऐसे प्लांट में भी कोई निवेश नहीं करेगा जिनके संयंत्रों का निर्माण वह खुद नहीं करता है. रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे प्लांट जिनको मंजूरी दे दी गई है उनमें निवेश की प्रक्रिया जारी रहेगी इसके अलावा आपसे कोई नए प्लांट पर चीन निवेश की मंजूरी नहीं देगा.

इसका सीधा साल से यह हुआ ऊर्जा के नवीनीकरण संसाधनों की ओर बढ़ रहा है. चीन नए तरीकों से बिजली बनाने की लगातार कर रहा है. लेकिन फिर भी सत्य यही है की वर्तमान में चीन को बड़ी मात्रा में कोयले की आवश्यकता होती है. रिपोर्ट के मुताबिक सन 2026 तक चीन में कोयले की मांग लगातार यूं ही रहेगी. उसके बाद ही बेहतरीन नवीनीकरण संसाधन विकसित कर दिए जाते हैं तो कोयले की मांग कम होने की संभावना है.

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भारत बढ़िया क्वालिटी का कोयला चीन जैसे देशों को बेच देता है जिससे हमें एक अच्छा लाभ मिलता है. लेकिन ऐसे में जब हमारा देश खुद ही कोयले की तंगी का सामना कर रहा है तो वह किसी भी सूरत में किसी और देश की जरूरत पूरा नहीं कर सकता. इस वजह से चीनी अर्थव्यवस्था को भी इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है, क्योंकि चीन प्रत्यक्ष रूप से अपने बिजली उत्पादन क्षेत्र में वह भारत पर निर्भर है. यदि वह दूसरे देशों से अपना आयात बढ़ाता है तो यह अपेक्षाकृत महंगा सौदा होगा.