भारत में मुख्य रूप से दक्षिण भारत मसालों के लिए विश्व प्रख्यात है. यहां कई ऐसे दुर्लभ मसाले पाए जाते हैं जिनकी डिमांड दुनिया भर में रहती है. यह मसाले स्वास्थ्य के अलावा भोजन को भी स्वादिष्ट बनाते हैं. हमारी रसोई में भी कई ऐसे मसाले हैं जिनके बगैर हम खाने की कल्पना भी नहीं कर सकते.
ऐसे में अगर मसालों की बात हो और काली मिर्च की बात ना हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता! काली मिर्च भारतीय रसोई का एक अटूट अंग है जिसे मसालों का राजा भी कहा जाता है. स्वाद के साथ ही साथ इसमें अनेक औषधीय गुण भी होते हैं. जैसे कि यह पाचन क्रिया को अच्छा करता है साथ ही लीवर को भी स्वस्थ बनाए रखता है. इनके अलावा यह जुखाम और बुखार पर भी कारगर है.
काली मिर्च को पसंद तो खूब किया जाता है लेकिन इसको उगाने के बारे में हर कोई नहीं सोच सकता. जिनके पास खेती और जमीन है वह भी केवल मौसम में अनाज उगाने में ही अपना ध्यान रखते हैं. मुख्य रूप से ऐसा माना जाता है कि कालीमिर्च दक्षिण भारत में ही उग सकती है. लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है.
मा दंतेश्वरी हर्बल फार्म में की गई काली मिर्च की खेती !
दक्षिण भारत के अलावा छत्तीसगढ़ के कोंडा गांव के चिकिलकुट्टी में भी काली मिर्च की खेती की जाने लगी है. यहां डॉ राजाराम त्रिपाठी ने मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म ऑर्गेनिक खेती के जरिए काली मिर्च की खेती शुरू की है. डॉ राजाराम त्रिपाठी ने इसी तर्ज पर काम शुरू किया कि अगर दक्षिण भारत में यह उग सकती है तो यहां भी जरूर उगेगी !
इसी के बाद उन्होंने मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म में काली मिर्च हूं गाना शुरू कर. इन्होंने यहां 1 एकड़ की भूमि पर ऑस्ट्रेलियन टीक के 700 पौधे लगाए हैं. जिनका प्रयोग इमारती लकड़ीयां बनाने के लिए किया जाता है. इसी हर्बल फॉर्म में इनके साथ ही काली मिर्च का पौधा भी रोपा जाता है.
फायदे !
डॉ राजाराम त्रिपाठी बताते हैं कि काली मिर्च की खेती के कुछ विशेष फायदे हैं. इसके पौधों में अलग से खाद डालने की आवश्यकता नहीं पड़ती है क्योंकि काली मिर्च के पेड़ से जो पत्ते गिरते हैं उन्हीं से ऑर्गेनिक खाद निर्मित हो जाता है. इसके अलावा इसे उगाने के लिए अलग से जमीन की जरूरत भी नहीं पड़ती है. यह खुरदरी सतह वाले पौधे जैसे कि आम कटहल और दूसरे जंगली पौधों के साथ ही उग जाती है. इसे उगाने की लागत भी कम है.
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