जानिए क्यों बनवाते थे मारवाड़ी सेठ हवेलियां? क्या हर हवेली के नीचे होता था खजाना?

राजस्थान जितना अपने शौर्य और पराक्रम के लिए प्रसिद्ध है उससे ज्यादा प्रसिद्ध है अपने किलो के लिए, और हो भी क्यों ना? आखिर यहां संसार भर से ज्यादा सुंदर दुर्ग और किले स्थित है. लेकिन इसके अलावा एक और खासियत है राजस्थान की जिसके कारण ये विश्व में जाना जाता है और वह है यहां की हवेली बनाने की परंपरा.

राजस्थान में मुख्य रूप से शेखावटी क्षेत्र में सैकड़ों हवेलिया निर्मित है, शेखावटी के अलावा भी राजस्थान में जैसलमेर, जोधपुर, कोटा और बीकानेर में हजारों हवेलिया निर्मित है. राजस्थान के गांव गांव में हवेलियों की बेहतर नक्काशी देखी जा सकती है, या यूं कहें कि राजस्थान में हवेली बनाने की परंपरा सदियों से चलती आ रही है.

लेकिन आखिर लोग हवेलियां क्यों बनाते थे? दरअसल राजस्थान में पानी की समस्या काफी पुरानी चाहिए इसीलिए लोग अपने पशुओं को लेकर बाहर जाया करते थे. अक्सर लोग अफगानिस्तान की ओर मार्च करते थे क्योंकि तब भारत और अफगानिस्तान में व्यापारिक संबंध बहुत अच्छे थे.

भारत और अफगानिस्तान में मुख्य रूप से ऊन और कपास का भारी मात्रा में व्यापार होता था. यह ज्यादातर पशुओं के जरिए ही होता था, इसके अलावा व्यापार के लिए ऊंट भी प्रयोग लाए जाते थे. इसी वजह से इस क्षेत्र में व्यापारी बसने लगे, यह रास्ता राजस्थान के चूरू से होकर अफगानिस्तान को जाता था इसीलिए चूरू वाले इलाके में भारी मात्रा में व्यापारी बसने लगे.

समय के साथ व्यापारियों ने अपना आशियाना यही बनाना शुरू कर दिया और, उन्होंने शुरुआत की हवेली निर्माण की. व्यापारिक संबंधों के बाद ही राजस्थान में हवेली बनाने की परंपरा चली और 18 वीं सदी तक यहां हजारों हवेलियां बन गई.

रेगिस्तान में व्यापारियों ने यहां गांव के गांव बसा दिए और सुंदर-सुंदर हवेलियां बनाई. बड़ी-बड़ी और खुले आंगनवाड़ी हवेलियों के दरवाजे छोटे रखे जाते थे, इनकी दीवारों पर प्राकृतिक रंगों से उत्कृष्ट कलाकृति कराई जाती थी. उस समय संयुक्त परिवार की प्रथा प्रचलित थी इसलिए आंगन बड़े करवाए जाते थे.

व्यापार के सिलसिले में घर के मुख्य सेठ अक्सर घर से बाहर हुआ करते थे, इसीलिए वह अपनी कमाई को घर के नीचे एक गोदाम में छुपा कर रखते थे. हवेलियों में एक खास बात यह थी कि हवेली में सबसे नीचे एक छोटा सा तहखाना बनाते थे जिसका दरवाजा बेहद छोटा होता था.

यहां वह अपनी सारी कमाई छुपा कर रखते थे और बड़े-बड़े ताले लगाया करते थे. यह साले इतने वजनी और मोटे हुआ करते थे कि हथौड़े की मार से भी नहीं टूटते थे, यह केवल चाबी से ही खुल सकते थे. ऐसा दावा किया जाता है कि आज भी राजस्थान में अनेकों ऐसी हवेलियां है जहां नीचे खजाना छुपा हुआ है लेकिन वहां तालों की चाबी किसी के पास नहीं हैं.