भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ऐसे कई चेहरे हैं जिन्हें कोई नहीं पहचानता, लेकिन उन्होंने भी देश के लिए अपना सर्वस्व त्याग किया था. आज हमें मिली स्वतंत्रता चंद लोगों का प्रयास नहीं है बल्कि इसके लिए लाखों लोगों ने कई बड़े बलिदान दिए थे उसकी बदौलत ही आज हम इस स्थिति में है. ऐसा ही एक नाम है जनरल शाहनवाज खान जिन्हें शायद ही आज कोई पहचानता होगा लेकिन उनकी हिम्मत की मिसाले दी जाती थी.
जनरल शाहनवाज खान का जन्म 24 जनवरी 1914 को रावलपिंडी के मटौर गांव में हुआ था. वह 1940 में ब्रिटिश इंडियन आर्मी का हिस्सा बने थे लेकिन जल्द ही उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बगावत कर दी थी. शाहनवाज खान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस के बेहद करीबी माने जाते थे.
1943 में शाहनवाज खान सुभाष चंद्र बोस के संपर्क में आए और उनसे गहरे प्रभावित हुए. जिसके बाद उन्होंने आजाद हिंद फौज ज्वाइन कर ली और शहनवाज खान आजाद हिंद फौज के पहले मेजर जनरल बने.
उन्होंने लगातार अपनी बगावत जारी रखी और आजाद हिंद फौज के जरिए तहलका मचाया, उन पर राजद्रोह का मुकदमा भी चलाया गया लेकिन फिर भी वह डरे नहीं. यहां तक कि उनकी हिम्मत इतनी ज्यादा थी उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत में लाल किले से अंग्रेजी झंडा हटा कर भारतीय झंडा लहरा दिया था.
यह कोई आम बात नहीं थी क्योंकि उस समय झंडा हटाने का मतलब था कि आपको सीधा गोलियों से दाग दिया जाएगा लेकिन फिर भी जनरल शहनवाज खान इस बात से नहीं डरे.
स्वतंत्रता के पश्चात शहनवाज खान भारत में ही रुके रहे. आजादी के बाद उन्होंने कांग्रेस ज्वाइन कर ली और वह 1952 से लगाकर 1971 तक चार बार मेरठ से सांसद भी रहे. वह 20 से अधिक सालों तक केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे. कई वर्षों तक उन्होंने मंत्री पद पर रहते हुए अनेक विभागों को संभाला था.