खाली पेट और खाली जेब बहुत कुछ सिखाता है। आज आपको मिलवाते है एक ऐसे शख्स से जिसने जिंदगी के किसी मोड़ पर हार नहीं मानी। रणजीत सिंह आज नैनीताल मोमोज़ चैन के मालिक है। इनकी ब्रांच काफी शहरों में है जैसे ही गोवा, पटना, इलाहबाद, लखनऊ, नॉएडा आदि। इनके सफर की शुरुआत इनके 10वीं पास करने के बाद हुई थी।
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इनके पिता का कहना था कि उन्होंने जो भी मेहनत की है उसका फल मिला है की उनका बेटा शिक्षित है। आज रणजीत सिंह इतनी बड़ी रेस्टोरेन्ट चैन के मालिक कैसे बने? इन्हें जीवन में किन किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा? हम शुरुआत से इनका जीवन दौर बताते है-
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एक दिन इनके माता पिता बात कर रहे थे कि अब हम केवल बेटे को पढ़ाएंगे और बेटी की पढ़ाई बंद करवा देंगे। उसी समय रणजीत ने सोच लिए था कि अब वह भी नौकरी करेंगे और घर के खर्चो में हाथ बटाएंगे। परन्तु पिता ने समझाया की पैसा कमाना इतना आसान नहीं होता और फैसला लिया गया की इनकी बहन गीता की पढ़ाई नहीं छुड़वाई जाएगी।
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रणजीत इस बारे में सोच ही रहे थे की कुछ दिन बाद इनके बुआ के लड़के इनके पास रहने आए, वह लखनऊ में रहते थे। उन्होंने भी रणजीत को समझाया की अभी तुम्हारी उम्र नहीं है पैसे कमाने की। लेकिन रणजीत चाहते थी कि वह इनके साथ लखनऊ जाए और वह काम करके पैसे कमाए।
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रणजीत ने भी हार नहीं मानी और अपने बुआ के लड़कों को उन्हें अपने साथ लखनऊ ले जाने के लिए राज़ी कर लिया। रणजीत बताते है इनके लिए इनके पिता के 2 अनमोल शब्द थे कि अगर ईमानदारी से किया गया काम हो तो वह उनके लिए गर्व का वक़्त होगा। और अगर उसी जगह मुझे पता चला कि तुम किसी गलत तरीके से पैसे कमाते हो तो वही मेरी मौत का दिन होगा
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इन्होंने लखनऊ में 400 रुपये की नौकरी से शुरुआत की थी। इत्तफाक से एक होटल में काम करने का मौका मिला। और उस वक़्त उन्हें 100 रुपये की टिप मिली थी। 400 रुपये की नौकरी करने वाले को जब दिन के केवल एक कमरे में चाय पहुँचने के 100 रुपये मिले तो वह बहुत खुश थे और बड़े ख्वाब देखने लगे थे।
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अब आगे के समय में उन्हें टाटा के गेस्ट हाउस में नौकरी मिली। वहाँ एक दिन चोरी हो गयी और इसका वहां काम करने वालों पर इल्जाम लगाया गया जिसमें रणजीत भी थे। उसके बाद इन्होंने वह काम छोड़ दिया और दूसरी जगह काम ढूंढ़ने की कोशिश की और एक जगह काम करना शुरू किया। सफर अच्छा चलने लगे था।
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19 साल की उम्र में इनकी शादी हो गयी थी। सर पर कर्जा आ गया था और फिक्र थी कि अब यह कर्जा कैसे उतारे। उस वक़्त उनके सामने एक घटना आई जब उनके दोस्त को हाथ जल जाने के कारण उसे काम से हटा दिया था। उस समय रणजीत को ख्याल आया कि अब उन्हें कुछ सिखने की जरूरत है और फिर उन्होंने रसोई का काम संभालना शुरू किया।
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फिर नौकरी छोड़ दी और कुछ और काम सिखने के लिए दिल्ली चले गए। 2005 में उन्हें दिल्ली में 2500 रुपये की नौकरी मिली। यहाँ उन्हें जिंदगी को नए नजरिये से देखने का मौका मिला। परन्तु जब उस जगह जहां यह काम करते थे वह बंद हो गया तो वापस इन्हें आसानी से काम नहीं मिला। इनके पास इतने पैसे भी नहीं थे कि खाने का सामान खरीद सके।
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एक रात को इनके पास जेब में केवल 2 रुपये थे। उसी वक़्त उन्होंने संकल्प लिया की अब वह जिंदगी का रुख बदलेंगे। उसके बाद उन्होंने 1 ठेले का इंतज़ाम किया और पूरी-सब्जी का काम शुरू किया। परन्तु काम चला नहीं था तो चाउमीन बनाने का काम शुरू किया और यह काम अच्छा चलने लगा।
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परन्तु फिर उन्होंने ख्याल बदला और सोचा कि क्यों न मोमोज़ का काम शुरू किया जाए। शुरू में मोमोज नहीं बीके परन्तु आगे काम अच्छा चला। शुरू में इन्होंने इन्वेस्टमेंट के तौर पर फ्री मोमोज देने शुरू किए थे और लोगों को पसंद भी आने लगे।
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रणजीत ने शुरुआत में अपना मोमोज का ठेला चलाने के लिए एक सप्ताह तक मोमोज लोगों को फ्री में खिलाये। जब लोगों को इनके मोमोज का स्वाद अच्छा लगा तो एक बेसुमार भीड़ इनके मोमोज खाने के लिए लगने लगी। फिर धीरे धीरे रणजीत ने अपने काम को और बढ़ाया।
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लोगों को इनके मोमोज इतने पसंद आये कि इनके मोमोज खाये बिना नहीं रह सकते थे। फिर रणजीत को एहसास हुआ कि अब मुझे यही मोमोज पूरे भारत के लोगों को खिलाने है। तब इन्होंने अपने इसी बिजनेस को फैलाते हुए अपनी अलग जगह पर ब्रांच खोल ली। और इस ब्रांच का नाम रखा “नैनीताल मोमोज़ चैन”।
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आज इनकी ब्रांच का इतना नाम है कि यह एक ब्रांड है। जब काम अच्छा चला तो आगे भी बढ़ने लगा और आज यह करोड़ों के मालिक है। उनकी जिंदगी के इस कठिन सफर में उनकी बीवी और परिवार ने उनका बहुत साथ दिया और कभी हिम्मत नहीं हारने दी।
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जिंदगी में अगर किसी चीज को शिद्दत से चाहो तो आपको सफलता जरूर मिलती है। रणजीत सिंह ने जिंदगी में बहुत कुछ सीखा और कभी हार नहीं मानी और आज यह हमारे लिए प्रेरणा का सार है।