अक्सर हमें बरगद और पीपल के पेड़ों के नीचे और नदी किनारों के पास देवी देवताओं की खंडित मूर्तियां मिल जाती है. सनातन धर्म में मान्यता है कि देवी देवताओं की खंडित मूर्तियों को घर में नहीं रखना चाहिए.
इसी वजह से मूर्ति के खंडित होने के पश्चात लोग उन्हें बाहर का रास्ता दिखा देते हैं. परंपरा तो मिट्टी की मूर्तियों को खंडित होने के पश्चात नदी में बहाने की है लेकिन आजकल तो कुछ और ही हो रहा है.
पहले मूर्तियां केवल मिट्टी की बनी होती थी इसलिए विसर्जन के पश्चात वह जल्दी ही पानी में घुल जाती थी लेकिन आजकल इसमें कई हानिकारक केमिकल जैसे कि प्लास्टर ऑफ पेरिस, थर्माकोल, सिंथेटिक कलर्स और कई आदि मिलाए जाते हैं इसी वजह से मूर्ति विसर्जन के पश्चात भी लंबे समय तक पानी में पड़ी रहती है और यह पानी को दूषित करती है.
इसी परंपरा को बदलने का निश्चय किया नासिक की रहने वाली तृप्ति ने जो पेशे से एक वकील हैं. समाज सेवा में काफी इंटरेस्टेड है और वह अपना संपूर्णम् सेवा फाउंडेशन चलाती है. इस संस्था की मदद से तृप्ति आसपास के क्षेत्र की सभी खंडित मूर्तियों को इकट्ठा करती है और उन्हें ठीक करके बस्ती में रहने वाले बच्चों को खेलने के लिए देती है.
तृप्ति का कहना है कि उनका घर गोदावरी नदी के तट के पास है और एक बार जब उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति लकड़ी की एक फोटो फ्रेम को नदी में बहा रहा था तो उसने निश्चय किया कि वह इस परंपरा को बदलेंगी.
तब उन्हें थोड़ी आर्थिक सहायता की आवश्यकता थी इसीलिए उन्होंने अपने पिताजी से पैसे मांगे और सोशल मीडिया के जरिए भी लोगों की सहायता मांगी जिसका उन्हें एक अच्छा पॉजिटिव रिस्पांस मिला।
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इनका यह फाउंडेशन महाराष्ट्र में कई क्षेत्रों से खंडित मूर्तियों को इकट्ठा करता है. वह खिलौने के अलावा आवारा पशुओं और परिंदों के लिए फीडिंग बाउल्स भी बनाते हैं. इस दौरान ध्यान रखा जाता है कि किसी की भी धार्मिक भावना आहत ना हो. इसी वजह से तृप्ति गायकवाड़ के इस कदम की सराहना चारों ओर हो रही है और लोग उन्हें शाबाशी दे रहे हैं.