जमीन के लिए अकसर विवादों के किस्से हम सुनते आए हैं, जमीन आखिर चीज ही ऐसी है जिसके लिए लोग लड़ने से डरते नहीं है. जमीन के लिए तो भाई भाई एक दूसरे का कत्ल करने के लिए राजी हो जाते हैं.
लेकिन आपको जानकर आ’श्चर्य होगा कि हमारे यहां भारत में एक गांव ऐसा भी है जहां सैकड़ों एकड़ जमीन वीरान पड़ी है लेकिन कोई वहां बसने की हिम्मत नहीं करता है.
यह गांव झारखंड के देवगढ़ जिले में मोहनपुर खंड की कटवन पंचायत में स्थित है, इस गांव का नाम है मठेया. ऐसी बात नहीं है कि इस गांव में आबादी कम है, यहां जनसंख्या का दबाव काफी ज्यादा है और ज्यादा लोग होने के कारण लोगों ने छोटे-छोटे मकान बना रखे हैं. इसी वजह से काफी कम स्थान पर ज्यादा लोग रहने को मजबूर है.
वह इस गांव से मात्र 15 किलोमीटर दूर लगभग 199 एकड़ जमीन वर्षों से सुनसान पड़ी हुई. यह रिहायशी जमीन है लेकिन कोई भी यहां मकान बनाने की हिम्मत नहीं करता है. दरअसल ऐसा एक अंध’विश्वास के कारण हो रहा है.
पिछले कई सालों से ऐसी मान्यता है कि जो भी इस जमीन पर मकान बनाएगा उसके घर का कोई ना कोई सदस्य मर जाएगा. इस बात का खौ’फ इतना है कि लोग यहां पशु जानवरों के छपरे भी नहीं बनाते हैं, लेकिन यहां खेती की जाती है. खेती होने के बावजूद भी यहां शाम होने के बाद कोई नहीं रुकता है और शाम होते ही यहां के खेत भी खाली हो जाते हैं.
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यहां के लोगों का कहना है कि यह काफी पुरानी मान्यता है और यहां भू’तों का निवास है, इसी वजह से यहां घर बनाना ख’तरे की घंटी है. क्षेत्र के पंचायत प्रभात हिमांशु शेखर यादव का कहना है कि इस अंध’विश्वास का निवारण खोजने की कोशिश जारी है, लेकिन क्षेत्र विशेष के लोगों को समझाना काफी मुश्किल है.
प्रधान का कहना है कि क्षेत्र में प्रधानमंत्री आवास योजना के द्वारा कोशिश की जाएगी कि क्षेत्र में आवास निर्माण का काम शुरू हो सके. शायद ऐसा भी हो सकता है कि इस क्षेत्र से लोगों का अंधविश्वास मिटाने के लिए किसी बड़े हवन पूजा का आयोजन किया जाए.