आजकल युवाओं में बीयर का सेवन आम हो गया है, ठंडी-ठंडी बीयर आजकल हर किसी का शौक हो गया है. लेकिन क्या आपने कभी बीयर की बोतलों के रंग पर गौर किया है?
अगर गौर से देखा जाए तो बीयर की बोतलों का रंग केवल भूरा और हरा ही होता है. लेकिन ऐसा क्यों है? दरअसल बीयर का प्रयोग लंबे समय से किया जाता रहा है. बीयर का प्रयोग सर्वप्रथम प्राचीन मिस्र में शुरू हुआ था और यही बीयर की पहली फैक्ट्री भी लगी थी.
तब बीयर को कांच की बोतलों में भरने का चलन आया. शुरुआत में बीयर को पारदर्शी कांच की बोतलों में ही भरा जाता था लेकिन बाद में देखा गया कि कांच की पारदर्शी बोतलों में भरने के कारण बीयर जल्दी ही खराब हो जाती है.
जब इस तथ्य पर लंबे समय तक रिसर्च की गई तब पाया गया कि सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणें यानी की पराबैंगनी किरणें पारदर्शी रंग में प्रवेश करके बीयर में उपस्थित एसिड के साथ क्रिया करके उसे जल्दी ही खराब कर देती है.
बाद में बीयर से बदबू आने लगती है और पीने योग्य भी नहीं रहती. इस समस्या के समाधान के लिए लंबे समय तक रिसर्च किया गया और पाया गया कि भूरे रंग में पराबैंगनी किरणें आसानी से प्रवेश नहीं कर पाती इसलिए बाद में बीयर की बोतलों का रंग भूरा तय कर दिया गया.
द्वितीय विश्वयुद्ध तक बीयर की बोतलों का रंग भूरा ही हुआ करता था लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के समय अचानक से ही भूरे रंग की बोतलों का अकाल पड़ गया.
यह वह स्थिति थी जब कांच की भूरे रंग की बोतल मिलना ही बंद हो गई इसलिए भूरे रंग के बजाय एक अन्य रंग ढूंढने की मुहिम चलाई गई. तभी पाया गया की भूरे रंग के अलावा हरा रंग भी पराबैंगनी किरणों को प्रवेश नहीं करने देता.
इसलिए द्वितीय विश्व युद्ध के समय से ही बीयर की बोतलें भूरे रंग के अलावा हरे रंग की भी बनाए जाने लगी और यह प्रथा आज तक चल रही है.