भारत के सार्वजनिक स्थानों जैसे रेलवे स्टेशन और बस स्टेशनों की हालत तो किसी से छुपी हुई नहीं है. विशेषकर रेलवे स्टेशन पर बहुतायत गंदगी देखी जा सकती है. हम देख सकते हैं कि कहीं किसी ने कचरा फैला रखा है, तो कहीं किसी ने गुटके के पीक जगह-जगह थके हुए हैं. भारत के नागरिक होने के नाते यह हमारे लिए मौलिक दायित्व है कि हम सार्वजनिक स्थानों की साफ-सफाई बनाकर रखें.
लेकिन बड़े अफसोस की बात है कि सरकार तो निर्माण करवा देती है लेकिन हम नागरिक होने के नाते अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पाते. यह भारत के नागरिकों का ही देर है कि भारत के रेलवे स्टेशन आज जर्जर स्थिति में है. मुख्यतः करोना काल के बाद में भारत में सफाई अभियान जोरों शोरों पर है. हर तरफ साफ सफाई पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है क्योंकि साफ-सफाई ही रोगों का निवारण है.
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हर रेलवे स्टेशन पर और हर जगह पर गुटके के पिक तो देखे जा सकते हैं कई बार तो कई बेशर्म नागरिक रेलगाड़ियों के दरवाजों पर भी गुटखे के पीक थूक देते हैं. सरकार नागरिकों से बार-बार अपील करती है कि वह स्वच्छता का ध्यान रखें लेकिन नागरिक है कि उनके कान पर जूं नहीं रेंगती.
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जानकारी के लिए बता दें कि सरकार को रेलवे की सुरक्षा व्यवस्था और संचालन के अलावा उसकी साफ सफाई के लिए भी एक मोटी रकम खर्च करनी पड़ती है. सरकार हर साल रेलवे स्टेशनों की साफ-सफाई और गुटखे के निशान साफ करने के लिए लगभग 1200 करोड़ रुपए की धनराशि खर्च कर देती है. केवल इतना ही नहीं यह दाग कितनी जिद्दी हो जाते हैं कि हर साल लाखों लीटर पानी केवल इनकी साफ सफाई करने में खर्च करना पड़ता है. देखा जाए तो यह धन का और संसाधनों का कितनी गलत जगह उपयोग हो रहा है.
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यदि नागरिक जब अपनी जिम्मेदारी समझे और कचरा ना फैलाएं तो यह करोड़ों रुपए देश के विकास में लगाए जा सकते हैं इसके अलावा हमें पानी का भी बचाव करने का एक सुनहरा मौका मिल सकता है. सरकार भी इसके रखरखाव से परेशान है इसलिए सरकार अब आधुनिक तरीके से साफ सफाई रखने के तरीके ढूंढ रही है.
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कई कमेटी बैठाई गई और विचार-विमर्श के बाद इतने अधिक खर्चे पर जब बातचीत हुई तो इसका एक समाधान ढूंढ़ लेने के लिए निर्णय लिया गया. आखिर में रेलवे स्टेशनों पर पिकदान की एक वेंडिंग मशीन योजना लाने के लिए फैसला किया गया है. इसमें थूकने के लिए एक पाउच मिलेगा जिसकी कीमत भी समाज के हर वर्ग को ध्यान में रखते हुए तय की गई है. सरकार ने इसकी कीमत महज 5 से 10 रुपए रखी है.
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पहले देश के 42 स्टेशनों पर यह पीकदान पाउच बेचने के स्टाल लगाए जा रहे हैं यदि यह योजना सफल रहती है तो इसे पूरे देश भर में बहाल किया जाएगा. इसके प्रचार-प्रसार के लिए भी सरकार को अच्छी खासी मशक्कत करनी पड़ेगी क्योंकि नागरिकों में इसका संचालन भी मुश्किल है.
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यह कैसे सहायता करेगी?– अब कई लोग सोच रहे होंगे आखिर यह सरकार की कैसे मदद करेगी? यह पीकदान पाऊस नागपुर की एक कंपनी तैयार करेगी. जो मुख्य रूप से पश्चिम उत्तर और मध्य रेलवे के लिए सप्लाई का काम करेगी. कंपनी का मुख्य उद्देश्य इस प्रकार से रहेगा कि इसे कम से कम लागत में बनाया जा सके.
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यह प्रकार का पाउच होगा जिसको व्यक्ति हाथ में लेकर पीकदान की भांति प्रयोग कर सकता है. इसके बाद वह इसे जेब में डाल कर भी रख सकता है. एक पाउच को कम से कम पंद्रह बार प्रयोग में लाया जा सकेगा. इसमें एक विशेष प्रकार की तकनीक प्रयोग में लाई जाएगी जिससे यह अंदर की पीक को ठोस में बदल देगा. प्रयोग में लाने के बाद यात्री इसे बाहर फेंक सकते है.
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अब कुछ लोग यह सोच रहे होंगे कि इससे समस्या का समाधान कैसे होगा यदि हम बाहर से करके तो पर्यावरण में प्रदूषण अवश्य फैलेगा. लेकिन ऐसा नहीं है. यह पीकदान पाउच 100% बायोडिग्रेडेबल है जिसका 10 से 15 दिनों में अपने आप ही विघटन हो जाएगा. इससे अतिरिक्त साफ-सफाई का खर्च बचेगा.
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जो कंपनी इसका निर्माण कर रही है उसने कई स्टेशनों पर पाउच खरीदने के लिए वेंडिंग मशीनें लगाना प्रारंभ कर दिया है. ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि देखा जाए कि लोग इसका कितना उपयोग करते हैं! कंपनी इसके लिए नागपुर नगर निगम और औरंगाबाद नगर निगम की भी सहायता ले रही है. हाल फिलहाल 42 स्टेशनों पर वेंडिंग मशीनें बहाल कर दी गई है. जोकि स्वछता की ओर एक सुनहरा कदम है.
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कुछ ही महीनों में निर्माण बड़े स्तर पर चालू हो जाएगा और देश के सभी रेलवे स्टेशनों पर इस पाउच को बेचा जाएगा. लेकिन इसका बेहतर संचालन केवल नागरिकों के ही हाथ में है. नागरिकों को चाहिए कि वह अपनी संपत्ति का ध्यान रखें और साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दें. ताकि हमारे संसाधन हमारी अन्य जरूरतों के लिए बच सके. सरकार बार-बार अपील कर रही है कि ज्यादा से ज्यादा लोग इसका उपयोग करें इसकी कीमत भी ज्यादा नहीं है कि आपको अपनी जेब हल्की करनी पड़ेगी.