26 जनवरी 2022 को 73 वें गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में पदम् पुरस्कारों की लिस्ट जारी हुई. जिसमें कई आम देखने वाले लोगों ने ऐसी कमाल की मिसाल पेश की है जो आजकल के युवाओं के लिए एक अच्छी प्रेरणा है. ऐसी ही एक प्रेरणादायक कहानी है 93 वर्षीय शंकर नारायण मैनन चुंडायिल की.
जहां सामान्य हर व्यक्ति 50 साल की उम्र पार करते ही बिस्तर पकड़ लेता है और हल्की-फुल्की शारिरिक गतिविधि करने से भी कतराने लगता है. या यूं कह लें कि थोड़ा सा उम्र का पड़ाव बैठते ही उनकी बी.पी. और शुगर की गोलीयां उनके डब्बे में ही रहने लगती है. लेकिन इन 93 वर्षीय गुरुजी के साथ ऐसा नहीं है. इस अवस्था में भी गुरु जी इतने फिट और मेहनती है कि उसका हमें अंदाजा नहीं है.
केरल निवासी शंकर नारायण उन्नी गुरुकुल में कलारिपयट्टू सिखाते हैं. इस हिसाब से यह अपने शिष्यों को मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग देते हैं. प्रशिक्षण के लिए इन्होंने वल्लभट्ट कलारी केंद्र की स्थापना की है जो केरल के चवक्कड़ में है. इनके पास न केवल अपने भारतीय शिष्य है बल्कि इसके अलावा यूनाइटेड स्टेट्स और फ्रांस समेत यूनाइटेड किंगडम के कुल 5000 शिष्य है.
शंकरनारायण अपने शिष्यों को प्रातः काल 5:30 से 8:30 बजे तक प्रशिक्षण देते हैं और इनके बेटे का कहना है कि उनके पिता अनुशासन के इतने कठोर है कि वह किसी की नहीं सुनते.
क्या होता है कलारीपयट्टू?
कलारिपयट्टू प्राचीन भारत की एक प्रसिद्ध युद्ध कला है. इस कला का उपयोग भारतीय युद्धों में किया जाता था. विशेष रूप से यह दक्षिण भारत में प्रसिद्ध थी और केरल में ही इसका आविष्कार भी हुआ था. इसमें लड़ाई से पूर्व सबसे पहले शरीर पर तेल की मालिश की जाती है और उसके बाद दौड़, कूद जैसी अनेक कलाबाजियां की जाती है. इसमें मुख्य रूप से तलवार चलाना, भाला चलाना, धनुष बाण चलाना जैसी चीजें सिखाई जाती है.
शंकरनारायण ने कहां से सीखी यह कला?
जानकारी के अनुसार शंकर नारायण के पूर्वज मालाबार के राजा की सेना में सेनापति थे. इस वजह से यह कला उनका पारिवारिक गुण रहा है. शंकरनारायण इस कला में अपनी परिवार के 7 वीं पीढ़ी के वंशज है और वह 6 वर्ष की अवस्था से ही इसका प्रयास कर रहे हैं.
शंकरनारायण इस कला में इतने माहिर है कि अब दूसरों को भी आसानी से अच्छा प्रशिक्षण दे रहे हैं. इसी वजह से इनका नाम 73 वें गणतंत्र दिवस के दिन पदम् श्री अवार्ड की लिस्ट में शामिल हुआ और उन्हें पद्मश्री अवार्ड से नवाजा गया.