दुनिया के सात अजूबों में शुमार संगमरमर और हाथी दंत की सफेदी लिए ताजमहल हर किसी को सुहाना लगता है. 1631 में ताजमहल का निर्माण कार्य शुरू हुआ जो कुल 22 साल तक चलते हुए 1653 में जाकर समाप्त हुआ. इसमें कुल 20000 मजदूरों ने काम किया था. बताया जाता है ताजमहल के निर्माण में उस समय तकरीबन 3 करोड रुपए की लागत आई थी. जो उस समय की सभी इमारतों की लागत से सबसे ज्यादा थी.
ताजमहल की सबसे अनोखी बात यह है कि यह भूकंप के झटकों में भी आसानी से नहीं गिरने वाला. लगभग 400 सालों से यह अब तक अडिग और सुंदर टिका हुआ है.
अब बात करते हैं सबसे दिलचस्प मुद्दे पर जो कि यह है की सीमेंट का आविष्कार सबसे पहले 1824 में इंग्लैंड हुआ था. तो आखिर कैसे बिना सीमेंट के ताजमहल का इतना मजबूत निर्माण किया सका? इसमें एक अच्छी बात और यह है की ताजमहल की नींव में भी सीमेंट और कंकड़-पत्रों का उपयोग नहीं किया गया है.
ताजमहल की नींव :– दोस्तों ताजमहल की नींव बनाने में लकड़ियों का इस्तेमाल किया गया है. आपको यह बात जानकर शायद थोड़ा अविश्वास हो सकता है लेकिन यह बिल्कुल सच है. इसकी नींव में आबुनस के पेड़ लगाए गए हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि ताजमहल के एकदम पास यमुना नदी बहती है. और आबुनस के पेड़ 30% नमी धारण करके लंबे समय तक मजबूती से खड़े रह सकते हैं. इन्हें नमी प्राप्त होने के बाद दीमक भी नहीं लगती.
लेकिन बीते कुछ वर्षों में देखा गया है की यमुना नदी का जलस्तर कम हो रहा है यदि ऐसा लगातार चल रहा चलता रहा तो आने वाले कुछ ही समय में ताजमहल का अस्तित्व समाप्त हो सकता है.
इसके बाद बात करते हैं की आखिर ताजमहल में संगमरमर के पत्थर चिपकाने के लिए क्या प्रयोग लाया गया था? दोस्तों उस समय सीमेंट जैसे किसी चीज का तो अस्तित्व था नहीं और बादशाह चाहते थे कि इसे सदा सदा के लिए मजबूत बनाया जाए. इसी वजह से इसके निर्माण के लिए एक खास तरह का घोल तैयार किया गया.
इस गोल में बड़ी मात्रा में चिकनी मिट्टी, गुड़, गोंद दाल,चीनी और कई मजबूत पकड़ रखने वाली चीजों का प्रयोग किया गया था. इन सभी चीजों के अलावा भी कई ऐसी सीक्रेट चीजें मिलाई गई थी जिनकी जानकारी नहीं है. इसमें संगमरमर के अलावा मूंगा, मोती जैसे अनेकों महंगे रत्नों का भी प्रयोग किया गया था.