संसद भवन का निर्माण 1921 में किया गया था। संसद भवन नई दिल्ली के बहुत ही शानदार भवनों में से एक है। यह विश्व के किसी भी देश में विद्यमान वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है। इसकी तुलना विश्व के सर्वोत्तम विधान-भवनों के साथ की जा सकती है। यह एक विशाल वृत्ताकार भवन है। जिसका व्यास 570 फुट है। यह लगभग छह एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है।
भवन के 12 दरवाजे हैं, जिनमें से पाँच के सामने द्वार मंडप बने हुए हैं। पहली मंजिल पर खुला बरामदा हल्के पीले रंग के 155 चित्ताकर्षक खंभों की कतार से सुसज्जित हैं। जिनकी प्रत्येक की ऊँचाई 75 फुट है। भले ही इसका डिजाइन विदेशी वास्तुकारों ने बनाया था परन्तु इस भवन का निर्माण भारतीय सामग्री से तथा भारतीय श्रमिकों द्वारा किया गया था। तभी इसकी वास्तुकला पर भारतीय परंपराओं की गहरी छाप है।
यदि आपने कभी ध्यान दिया हो तो आपको पता चलेगा कि संसद भवन में पंखे उलटे लगे हुए है। लेकिन आप सोच रहे होंगे की इसके पीछे ऐसी क्या वजह रही होगी कि संसद भवन में पंखे उल्टे लगाने पड़े। तो आपको बता दे कि इसका कारण संसद भवन की स्थापत्य कला है।
जब संसद भवन का निर्माण हुआ था तो भवन की गोल गुमद की वजह से उँचाई इतनी थी कि पंखे लगा पाना संभव नहीं था। गोल गुमद की वजह से छत बहुत ऊपर होने के कारण फिर पंखो को लम्बे डंडो के सहारे लटका कर लगाने की बात हुई। लेकिन ऐसा करना से संसद भवन की ख़ूबसूरती खराब हो जाती इसलिए लम्बे डंडे के सहारे लटका कर पंखे नहीं लगाए गए।
और इसलिए पंखो को जमीन पर खम्भों के सहारे उल्टे लगाने का फैसला किया गया। हालाँकि कुछ सालों बाद संसद भवन में AC लगाने की बात हुई लेकिन संसद भवन की ऐतिहासिकता को बनाये रखने के लिए इन पंखों को नहीं हटाया गया।