मंदिरों में भगवान के लिए हर प्रकार की सुविधा की जाती है, लगभग सभी प्रसिद्ध मंदिरों में भगवान के लिए भोग बनाया जाता है, वस्त्र तैयार किए जाते हैं, जल भी चढ़ाया जाता है. भगवान को नहलाने से लगाकर उन्हें सुलाने तक कि हर प्रक्रिया मंदिरों में होती हैं.
लेकिन इन सबके बावजूद शरीर की एक अन्य मुख्य क्रिया शौच की व्यवस्था मंदिरों में नहीं होती, कुछ लोग सोचते हैं कि आखिर ऐसा क्यों है? क्या इसके पीछे कोई कारण है या मनुष्य ने अपनी मर्जी से ही इसकी व्यवस्था नहीं की.
मित्रों इसके पीछे स्पष्ट रूप से कारण है. शौच वह क्रिया है जिसमें मनुष्य के शरीर द्वारा लिए गए हानिकारक पदार्थ बाहर किए जाते हैं. लेकिन किसी भी देवता का शरीर मनुष्य के शरीर से भिन्न होता है, यह मनुष्य शरीर की भांति पंच तत्वों से निर्मित नहीं होता बल्कि इसमें अन्य कई तत्व और मौजूद होते हैं.
इसके अलावा सबसे बड़ा कारण यह है कि भगवान कभी भोजन के भूखे नहीं होते, भगवान को भोजन कराया जाना मनुष्य का केवल सद्भाव है. असल में भगवान कभी भोजन करते ही नहीं है यह तो केवल मनुष्य की सद्भावना होती है जिससे देवता तृप्त हो जाते हैं.भगवान की सेवा करना अर्थात उन्हें खिलाना, पिलाना सुलाना यह सिद्ध करता है कि उस मनुष्य को भगवान के प्रति कितनी चिंता है!
आप इसे यूं समझ सकते हैं कि जब भगवान राम सीता और लक्ष्मण के साथ पंचवटी का भ्रमण कर रहे थे तब उन्होंने अपनी भक्त शबरी के झूठे बेर खाए थे.
उस समय भगवान राम ने यह नहीं देखा कि यह बेर कितने स्वाद हैं अथवा झूठे हैं! उन्होंने केवल शबरी की सद्भावना देखी और बड़े ही प्रेम पूर्वक उसके परोसे गए बेर खा लिए. यह इस बात को सिद्ध करता है कि भगवान कभी भी भोजन के भूखे नहीं होते.