सनातन धर्म में प्रकृति निर्माण करने वाले प्रत्येक वस्तु को देवी देवता का रूप माना जाता है. जैसे सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, आकाश, पवन, नदियां आदि. इसी वजह से प्रकृति में उपस्थित सभी नदियां भी देवियों का रूप मानी जाती है, हर एक नदी का अपना-अपना धार्मिक महत्व है.
लेकिन जिस नदी का सर्वाधिक धार्मिक महत्व है वह है हमारे देश की सबसे बड़ी नदी “गंगा नदी”. सनातन धर्म में गंगा नदी का महत्व बहुत विस्तृत है. इसे सभी नदियों में महान एवं प्राण दायिनी कहा गया है.
इसे “मोक्षदायिनी देवी” भी कहा गया है, यही कारण है कि सनातन धर्म में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसकी अस्थियां गंगा में विसर्जित कर दी जाती है. केवल इतना ही नहीं की गंगा के जल को अमृत के समान शुद्ध माना गया है, जिसे लोग घर में बोतलें भर के रखते हैं जिससे वे धार्मिक अनुष्ठानों पर प्रयोग करते हैं. परंपराओं का पालन करने के कारण गंगा में हर दिन भारी मात्रा में अस्थियां विसर्जित की जाती है. लेकिन इतनी अस्थियां विसर्जित करने के बाद भी यह पानी खराब क्यों नहीं होता?
कहां जाती है विसर्जित अस्थियां ?– धार्मिक पुराणों के अनुसार व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात विसर्जित अस्थियां स्वयं समाप्त हो जाती है एवं उस जीव का मिलन शिव और शक्ति में हो जाता है.
इसके पश्चात वह सीधा मोक्ष के द्वार पर होता है. इसीलिए विसर्जन के पश्चात हड्डियां समाप्त हो जाती है. इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि गंगा नदी के पानी में पानी की मात्रा ज्यादा है. पारा किसी भी तत्व को आसानी से गलाने में सक्षम है.
हम सभी जानते हैं की हड्डियों में कैल्शियम, फास्फोरस और पोटाश की मात्रा सबसे ज्यादा होती है. इसलिए विसर्जित हड्डियों पर जब पारा अभिक्रिया करता है तो उनमें उपस्थित सभी तत्व स्वयं गल जाते हैं. जब अस्थियों में उपस्थित कैल्शियम एवं अन्य तत्व गल कर पानी में घुल जाते हैं.
अब यह अपेक्षाकृत सरल अणुओं में टूट जाते हैं जिसका दोबारा उपयोग किया जा सकता है. इसीलिए यह तत्व जल में रहने वाले जीवो के लिए पोषण का काम करते हैं. जल में रहने वाली सभी मछलियां एवं अन्य जीव, पौधे इन तत्वों का पौष्टिक आहार की भांति प्रयोग करते हैं.
गंगा नदी का पानी क्यों नहीं होता खराब ?– अभी तो पुराणों के अनुसार गंगा जीवनदायिनी है, यह अमृत समान है इसलिए कभी खराब नहीं हो सकता. वैज्ञानिक तर्क के अनुसार गंगा नदी के पानी में ऐसे कई तत्व पाए जाते हैं जो लंबे समय तक पानी को खराब नहीं होने देते. इस रूप से इसमें “बैक्टीरियोफेज” नामक एक जीवाणु पाया जाता है. जो हानिकारक जीवो को जीवित नहीं रहने देता. बैक्टीरियोफेज हमारे शरीर में भी पाया जाता है जो हमारे शरीर में भी हानिकारक जीवों के प्रवेश को रोकता है.
वास्तव में गंगा नदी में ऐसी कई विधाएं मौजूद है जो दुनिया की अन्य किसी नदी में नहीं है. अपने आप में एक खास और दुर्लभ नदी है, भारत के लिए एक वरदान है. लेकिन आजकल लोग साफ सफाई का बिल्कुल ध्यान नहीं रखते और अस्थियों के साथ ही साथ न जाने कौन कौन सा कचरा नदी में डाल देते हैं! इसके कारण आज नदी प्रदूषित हो रही है एवं इसे सफाई की आवश्यकता है.