हम में से शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने महाभारत के युद्ध के बारे में कभी ना सुना हो. क्योंकि सनातन धर्म से नाता रखने वाला हर व्यक्ति यह जानता है कि द्वापर युग के अंत में विश्व में उस समय का सबसे भयानक युद्ध महाभारत दो पक्षों कोरवौं और पांडवों के बीच लड़ा गया था.
युद्ध समाप्ति के पश्चात दुनिया से मानो सभी योद्धा एक साथ पलायन कर गए थे क्योंकि युद्ध में भारी संख्या में लोग मारे गए थे. मान्यता के अनुसार युद्ध समाप्ति के पश्चात संसार में केवल 18 योद्धा ही बचे थे, शेष सभी युद्ध में मारे गए. सभी लोग यह भी जानते हैं कि यह भयानक महाभारत श्री कृष्ण के नेतृत्व में कुरुक्षेत्र में लड़ा गया था, जो वर्तमान के हरियाणा राज्य में आता है.
लेकिन आखिर यह युद्ध कुरुक्षेत्र में ही क्यों लड़ा गया? भगवान श्री कृष्ण ने आखिर युद्ध स्थल कुरुक्षेत्र को ही क्यों बनाया? धर्म ग्रंथों के अनुसार उस समय संसार में पाप अपनी चरम सीमा पर था. चारों ओर मनुष्यता खतरे में थी. स्त्रियों का शोषण किया जाने लगा, भाई-भाई से लड़ने लगा, चारों तरफ से धोखाधड़ी बढ़ने लगी और लोगों में वासना घर करने लगी.
ऐसे में किसी बड़े युद्ध का होना निश्चित था. धर्म पुराणों के अनुसार उस समय पाप के नाश के लिए ही भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण अवतार लिया था, और भगवान श्री कृष्ण ने इस संसार में से अधर्म को मिटाने के लिए पांडवों समेत द्रौपदी को निमित्त बनाया था. पांडव एवं द्रौपदी ही उस समय अधर्म का नाश करने के लिए सक्षम थे.
इसीलिए भगवान श्री कृष्ण स्वयं यह चाहते थे कि एक बार एक महासंग्राम हो, और अपनी इच्छा अनुसार ही उन्होंने पांडवों को अपने हक के लिए कौरवों से युद्ध करने का आह्वान दिया था. इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण यह नहीं चाहते थे कि कौरवों और पांडवों के बीच में किसी भी प्रकार की संधि हो जाए.
क्योंकि यदि दोनों पक्षों में संधि हो जाती तो अधर्म का विनाश नहीं होता, इसके बजाय दोनों पक्षों एक दूसरे के साथ मिल जाते और संसार में पाप अधिक फैल जाता. महाभारत युद्ध के कुरुक्षेत्र में ही संपन्न होने के लिए अलग-अलग धर्म ग्रंथों में कई तथ्य बताए गए हैं.
इनमें से सबसे ज्यादा तार्किक तथ्य यह है कि जब कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध निश्चित हो गया तब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं युद्धभूमि निश्चित करने के लिए कहा था. इसी कारण भगवान श्री कृष्ण ने कैसे युद्ध भूमि ढूंढ रहे थे जहां दोनों पक्षों के बीच संधि होना मुश्किल हो. भगवान श्री कृष्ण एक ऐसी जगह की खोज कर रहे थे जहां भाई-भाई आपसी संवेदनाओं में ना बह कर धर्म-अधर्म के आधार पर युद्ध करें.
आखिर कुरुक्षेत्र ही क्यों ?– भगवान श्रीकृष्ण ने युद्धस्थली की खोज के लिए अपने कई दूत अनेक दिशाओं में भेजे थे. कई दिनों तक का युद्ध स्थली की खोज होती रही लेकिन भगवान श्री कृष्ण को कोई भी जगह उपयुक्त नहीं लग रही थी. कुछ दिनों बाद भगवान श्री कृष्ण का एक दूत वापस द्वारका नगरी लौटा और उसने श्री कृष्ण से कहा कि मैंने एक उपयुक्त युद्ध स्थल ढूंढ ली है.
दूत ने सुझाया की जब मैं युद्धस्थल की खोज करते-करते कुरुक्षेत्र में पहुंचा तो मैंने पाया कि यह भूमि युद्ध की गुहार कर रही है. मैंने वहां दो भाइयों को लड़ते हुए देखा. दोनों भाई जमीन के एक छोटे टुकड़े के लिए बहस कर रहे थे. छोटा भाई बार-बार अपने बड़े भाई का अपमान किए जा रहा था और इसी बात से गुस्सा होकर अचानक ही बड़े भाई ने अपने छोटे भाई को जान से मार दिया.
बड़े भाई को अपने छोटे भाई का कत्ल करने में जरा भी शंका नहीं आई और छोटे भाई ने भी अपने बड़े भाई का खूब अपमान किया था. दूत ने आगे कहा कि जैसा कि आप चाहते हैं कि दोनों पक्षों में संधि ना हो, इसलिए यह जमीन उपयुक्त है क्योंकि यहां पहले से ही भाइयों के विवाद चल रहे हैं. श्री कृष्ण ने भी दूत की पूरी बात सुनकर कुरुक्षेत्र को रणभूमि बनाने का निश्चय कर लिया.
इसके पीछे एक अन्य कथा इस प्रकार भी है कि कुरुक्षेत्र की जमीन पर मय नामक एक असुर का वास हुआ करता था जो बेहद पापी था. इस वजह से कुरुक्षेत्र किए जमीन रण की मांग की किए जा रहे थे. कुरुक्षेत्र की जमीन के बारे में कहा जाता है कि यह जमीन रिश्तो के प्रति कम संवेदनशील थी क्योंकि इसके आसपास निवास करने वाले सभी लोगों को रिश्तो की कद्र थोड़ी कम थी.
इनके अलावा महाभारत के वन पर्व के अनुसार कुरुक्षेत्र की जमीन मनुष्य के क्रियाकल्पों के कारण कुछ समय के लिए क्षणिक दूषित हो गई थी. जबकि वास्तव में यह जमीन सीधा मोक्ष का रास्ता सुझाती है. क्योंकि कौरवों और पांडवों के पूर्वजों ने स्वयं भगवान इंद्र से यह वरदान प्राप्त किया था कि जो भी कुरुक्षेत्र की इस जमीन पर अपने प्राण त्याग देगा वह मोक्ष प्राप्त करेगा. धर्म ग्रंथों में कुरुक्षेत्र के कण-कण को मोक्ष का रास्ता बताया है.
नारद पुराण में भी कुरुक्षेत्र को “मोक्ष का द्वार” कहकर पुकारा गया है. इसके अलावा श्रीमद्भागवत गीता के प्रथम श्लोक में भी कुरुक्षेत्र को “धर्म क्षेत्र” और महाभारत को “धर्म युद्ध” कहकर पुकारा गया था. यही कारण था कि भगवान श्री कृष्ण ने अपने स्वर्णिम वचन यानी कि गीता ज्ञान साक्षात् अर्जुन को कुरुक्षेत्र की भूमि में दिया था.