हमारे हिंदू समाज में कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास स्थल बताया गया है. इसलिए कैलाश का नाम ही अपने आप में इतना पवित्र हो जाता है कि इससे लाखों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है. इसके अलावा कैलाश पर्वत बौद्ध और जैन धर्म के लिए भी अति महत्वपूर्ण है. जैन अनुयायियों का मानना है कि उनके गुरु ऋषभदेव ने कैलाश पर्वत पर ही ज्ञान प्राप्ति की थी और यही उन्हें निर्वाण की प्राप्ति हुई.
लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि कैलाश पर्वत अपने आप में एक रहस्य है. कैलाश पर्वत से जुड़े ऐसे कई तथ्य हैं जिन्हें आज तक कोई नहीं सुलझा पाया है. वैज्ञानिकों ने भी इस बारे में केवल कुछ छोटे-मोटे अनुमान लगाए हैं उनके पास भी इन रहस्यों का कोई स्पष्ट कारण नहीं है.
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जानिए क्या-क्या है ऐसी रोचक बातें-
1-मित्रों कैलाश पर्वत समुद्र तल से 21700 फीट ऊंचा है, सीधी सी बात है यह दुनिया का सबसे ऊंचा पर्वत नहीं है. वर्तमान में यह तिब्बत क्षेत्र में स्थित है. इसके दोनों और मानसरोवर और राक्षस ताल नाम की झीलें स्थित है. मानसरोवर और राक्षस ताल से कई महत्वपूर्ण बड़ी नदियां निकलती है. जिनमें ब्रह्मापुत्र, सिंधु और सतलज मुख्य है.
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जब हम कैलाश पर्वत से कुछ दूरी पर होते हैं तो हमें यह बर्फ से ढके हुए शिवलिंग की भांति प्रतीत होता है. लेकिन यह महत्वपूर्ण नजारा केवल अमरनाथ की यात्रा पर जाने वाले यात्रियों को ही देखने को मिलता है. आश्चर्य की बात है की दुनिया का सबसे ऊंचा पर्वत ना होने के बावजूद भी कैलाश पर्वत पर कोई नहीं चढ़ सकता. जबकि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर आज तक 5000 से भी ज्यादा लोग चढ़ चुके हैं.
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शास्त्रों में भी कहा गया है की कैलाश पर्वत पर कोई जीवित व्यक्ति नहीं चढ़ सकता, क्योंकि कैलाश पर्वत भगवान शिव का निवास स्थान है इसलिए यह मोक्ष का धाम है. इसलिए यहां केवल पवित्र आत्मा ही निवास कर सकती हैं. आज तक देखा गया है कि जिस भी व्यक्ति ने कैलाश पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की है तो रास्ते में ही रहस्यमय तरीके से उसकी मृत्यु हो जाती है.
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इसी कड़ी में 1999 में रूस के एक आंखों के डॉक्टर Ernst Muldashev ने कैलाश पर्वत पर चढ़ने का निश्चय किया और इसके बारे में अध्ययन करने की चेष्टा की. इसके लिए डॉक्टर साहब ने एक टीम गठित की जिसमें कई इतिहासकार और जियोलॉजिस्ट सहित कुछ डॉक्टर शामिल थे. आपकी दो ने कई दिनों तक सर्च अभियान चलाया लेकिन खराब मौसम के चलते यह भी ठेठ कैलाश पर्वत नहीं चल सके.
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टीम के वापस लौटने पर उन्होंने कहा कि कैलाश पर्वत कोई पर्वत नहीं है बल्कि किसी जमाने में मानव निर्मित एक पिरामिड है. क्योंकि पास से देखने पर यह बिल्कुल पिरामिड जैसा प्रतीत होता है और दूर से पर्वत लगता है. हालांकि उनके पास इसके कोई प्रमाण नहीं थे, यह मात्र उनका अंदाजा था.
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2- कुछ लोगो जिन्होंने कैलाश पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की है उनका कहना है कि जब वे कैलाश पर्वत के पास होते हैं तो वहां समय तेजी से गुजरता है. इसके लिए कुछ प्रयोग भी किए गए जिसमें सामने आया कि एक सामान्य मनुष्य के नाखून एक हफ्ते में जितने बढ़ते हैं कैलाश पर्वत के पास उससे ज्यादा नाखून मात्र 2 दिन में बढ़ जाते हैं. हालांकि पृथ्वी पर तो समय एक समान स्तर माना गया है इसलिए कैलाश पर्वत पर समय आगे हो ऐसा संभव नहीं है.
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3-कई मशहूर पर्वतारोहियों के दलों ने यूं तो बार-बार कैलाश पर चढ़ने की कोशिश की है. लेकिन कुछ सालों पहले रूस के एक मशहूर पर्वतारोही ने कैलाश पर चढ़ने की ठानी थी. वह कई दिनों तक पर्वत की ओर चढ़ता रहा, लेकिन जब वह अपने लक्ष्य से थोड़ी ही दूर था तब बीच रास्ते से ही वह वापस लौट आया. जब उससे वापस लौटने का कारण पूछा गया तो उसने बताया कि जो मेरा लक्ष्य मेरे सामने था और मेरी मंजिल मैं बिल्कुल पास खड़ी थी तब मेरे शरीर में एक विशेष कंपकंपी छूट गई. मेरा ह्रदय इतना जोर से धड़कने लगा मानो अब मैं दुनिया छोड़कर जाने वाला हूं. मेरे पैर वहीं रुक गए और मेरी अंतरात्मा बार-बार कह रही थी, मुझे अब वापस लौट जाना चाहिए.
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4-वैसे तो इतिहास में कोई भी कैलाश पर नहीं चढ़ सका लेकिन इतिहास में दावा किया जाता है की 11 वीं सदी में एक व्यक्ति ने कैलाश की चढ़ाई की थी. यह तिब्बत के रहने वाला एक साधु “मिलारेपा” थे. बताया जाता है कि मिलारेपा स्वयं एक साधु थे और अपनी भक्ति दर्शन में ही उन्होंने कैलाश की चढ़ाई की थी. यदि यह बात सच है तो मिलारेपा अकेले ऐसे जीवित इंसान हैं जिन्होंने कैलाश पर्वत की चढ़ाई की हो. हालांकि खतरे और लोगों की आस्था को देखते हुए सरकार ने सभी लोगों के कैलाश पर्वत पर चढ़ाई की रोक लगा दी है. क्योंकि यही देखा गया है कि इसमें व्यक्ति के जीवित बचने के अवसर कम होते हैं.
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दूर से सुनाई देती है डमरु और ॐ की ध्वनि- अमरनाथ की यात्रा करने वाले और कैलाश पर्वत के इर्द गिर्द के लोगों को पर्वत से डमरु और ओम् की ध्वनि सुनाई देती है. दिन हो या रात ऐसा प्रतीत होता है की भगवान शिव लगातार ओम् का वाचन कर रहे हैं. वैज्ञानिकों ने भी इस संदर्भ में कारण पता लगाने की कोशिश की तो उन्हें भी कोई स्पष्ट कारण नहीं मिला. हालांकि बाद में यह कहा गया कि शायद यह इसलिए है की ठंडी हवाएं जब पर्वतों से टकराती है तो वह वह कोई ध्वनि परिवर्तित करती है इसलिए लोगों को डमरू की आवाज आने का आभास होता है.
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शास्त्रों में कैलाश पर्वत को ब्रह्मांड का केंद्र माना गया है. और वैज्ञानिक मत के अनुसार भी कैलाश पर्वत पृथ्वी का केंद्र है. एक ओर उत्तरी ध्रुव स्थित है जबकि दूसरी ओर दक्षिणी ध्रुव. इन दोनों के मध्य में हिमालय पर्वत माला है और हिमालय पर्वत माला का केंद्र कैलाश पर्वत है. शास्त्रों में कैलाश पर्वत को अक्ष मुंडी भी कहा गया है यानी वह स्थान जहां आकाश धरती से आकर मिलता है. इसके साथ ही कैलाश पर्वत ही वह स्थान है जहां दसों दिशाओं का आपसी मिलन होता है.