महाशिवरात्रि के महापर्व पर कहा जाता है किसी भी मनुष्य के अंदर की आंतरिक ऊर्जा को सशक्त किया जा सकता है. ध्यान गुरु सद्गुरु का कहना है कि बौद्ध का वह आयाम जो भौतिक वस्तुओं से परे होता है वह हमारी तीसरी आंख होता है.
तीसरी आंख और कुछ नहीं बल्कि हमारे अंदर की समाहित वह शक्तियां हैं जिनके बारे में हमें जानकारी नहीं होती. सद्गुरु का कहना है की महाशिवरात्रि ही वह पर्व है जब आप अपने अंदर समाहित सभी शक्तियों को उजागर कर सकते हैं.
लेकिन यह स्थिति तभी संभव है जब आप परमात्मा के निकट हो और उन पर अटल विश्वास करते हो. महाशिवरात्रि के महापर्व का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दोनों महत्व है. अमावस्या से एक दिन पहले की सबसे अंधेरी रात को शिवरात्रि कहा जाता है. इस हिसाब से 1 वर्ष में 12 से 13 शिवरात्रि होती है. माघ महीने में आने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है.
क्या करें महाशिवरात्रि को? महाशिवरात्रि वह वक्त होता है जब ऊर्जा का प्रभाव संपूर्ण ब्रह्मांड में ऊपर की ओर होता है. यदि किसी मनुष्य को अपना स्वविवेक जागृत करना है तो अवश्य ही वह महाशिवरात्रि के दिन ध्यान मुद्रा में बैठे. अपनी रीड की हड्डी सीधी करके ध्यान मुद्रा में बैठना महाशिवरात्रि के दिन सर्वाधिक लाभदाई है.
यह उन सभी के लिए लाभदायक है जो योगी है, आध्यात्मिक प्रभावी है या गृहस्थ है. लेकिन आजकल के मनुष्य इस काम को काफी कठिन समझते हैं तभी अटल ध्यान मुद्रा लगाना अब केवल योगियों के बस की बात ही रह गया है.
सद्गुरु के अनुसार हमारी आंखों की इंद्रिया आसपास का वातावरण देख सकती है लेकिन यदि हमारा हमें हमारी प्रकृति को सूक्ष्म से जानना है तो हमें हमारी आंतरिक ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है. इस कार्य को करने के लिए महाशिवरात्रि से अच्छा कोई भी दिन नहीं हो सकता क्योंकि भगवान शिव ही वह शक्ति है जो सर्वदा समाधि है और सर्वदा चलायमान है.
शिव की आराधना करने के लिए पुष्प, जल और पूजा सामग्री से ज्यादा आवश्यक है एकाग्र चित्त होकर उनका ध्यान करना. लेकिन इसका आशय ऐसा भी नहीं है कि केवल एक दिन ध्यान ही काफी है. आप सर्वदा यथासंभव भगवान शिव का स्मरण करें.