यह तो हम सभी बखूबी जानते हैं कि जब भगवान श्री राम माता सीता को रावण से छुड़ाने के लिए युद्ध का फैसला करते हैं. तब वह समुद्र पार करके लंका तक पहुंचने के लिए उस पर पुल बनाने का फैसला करते हैं.
इस काम में उनकी सहायता उनकी सेना के दो वरदान प्राप्त वानर विश्वकर्मा के पुत्र नल और नील करते हैं. क्योंकि नल और नील ही वह वानर थे जिन का फेंका हुआ कोई भी पत्थर पानी में नहीं डूबता था. लेकिन यहां सबसे साधारण प्रश्न यह उठता है कि अपनी आंखों के सामने पुल बनता हुआ देख, त्रिलोक विजेता रावण ने वानरों को रोका क्यों नहीं?
दरअसल ऐसी बात नहीं है कि रावण को इस बात का ध्यान नहीं था कि वानर सेना समुद्र पर पुल बनाकर लंका की ओर रुख कर रही है. रावण यह बात बखूबी जानता था लेकिन वास्तव में उसे लगता था कि वह काफी शक्तिशाली है और यह वानर उसका कुछ नहीं कर पाएंगे. अपने घमंड में डूबे रावण को ऐसा लगा कि कुछ ही समय में यह वानर पुल बनाने की अपनी योजना स्वयं ही तोड़ देंगे। क्योंकि पानी पर पत्थरों का पुल बनाना असंभव है. लेकिन जब लंबा समय बीत जाने के बाद भी वानर अपने काम में डटे रहे तो आखिरकार रावण ने अपनी मायावी अ’सुरों को बुलाकर उनकी इस योजना को बिखेरने का आदेश दिया.
जब पानी की मछलियां बनकर पहुंच गए रावण के अ’सुर:–
अपने राजा का आदेश पाते ही रावण के मायावी अ’सुर समुंद्र में मछलियों का रूप धारण करके वानरों की सेना को हराने पहुंचे. इधर बाहुबली हनुमान जी, नल और नील के नेतृत्व में पुल बनाने का काम जोरों शोरों से चल रहा था. इस दृश्य को देखने के बाद सभी मछलियों में से एक स्वर्ण मछली को अ’सुरों का नेतृत्व करने का दायित्व सौंपा गया.
संख्या में अधिक इन माया में मछली होने वानरों के फेंके गए पत्थरों को दूसरे छोर पर फेंकना शुरू कर दिया. कुछ समय तक तो वानर अपने काम में डटे रहे लेकिन जब पुल टूटना शुरू हुआ तो उन्हें चिंता होने लगी. वानर ह’ताश होने लगे तभी हनुमान जी स्वयं समुंदर के बीच जाकर खड़े हुए.
ऐसा चम’त्कार देख नेतृत्व करने वाली वह स्वर्ण मछली हनुमान जी की तरफ आकर्षित होने लगी. कुछ ही समय में उस स्वर्ण मछली ने एक स्त्री का रूप लिया. यह देखो हनुमान जी ने कहा हे देवी ! मेरा जन्म भगवान श्री राम की सेवा करने के लिए हुआ है.
यह दृश्य देख स्वर्ण मछली समेत सभी मायावी मछलियों ने सोचा कि जिसकी सेवा इतना शक्तिशाली व्यक्ति कर रहा हो वह स्वयं कितना शक्तिशाली होगा! स्वर्ण मछली ने सभी को निर्देश दिया कि यदि ऐसा है तो होने वाले इस युद्ध में रावण की जीत कभी नहीं हो सकती.
हनुमान जी ने उनसे प्रार्थना की कि आप हमारे काम में रोड़ा ना बने अन्यथा परिणाम बुरा हो सकता है. उनके इस प्रार्थना के बाद संपूर्ण मछली रूपी दानवों ने उन्हें अपनी संभव सहायता देने का आश्वासन दिया.