बड़ी प्रसिद्ध कहावत है “कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमति ने कुनबा जोड़ा”. इस कहावत में जिस भानूमति का नाम लिया जाता है वह और कोई नहीं दुर्योधन की पत्नी है.
महाभारत ग्रंथ में पांडव, कौरवों, कुंती, द्रौपदी, गांधारी समेत कई विशिष्ट पात्रों का खूब जिक्र किया गया है लेकिन इसमें दुर्योधन की पत्नी भानुमति का जिक्र बेहद कम किया गया है. लेकिन ऐसा नहीं है कि दुर्योधन की पत्नी भानुमती का जीवन एक सामान्य स्त्री की भांति गुजरा. भानुमति स्वयं अपने आप में महाभारत का एक अलग इतिहास है.
कौन थी भानुमति ?
बताया जाता है कि भानुमति कलिंग के राजा चित्रांगद की बेटी थी. भानुमती धरती पर द्रौपदी के बाद सबसे सुंदर महिला थी. बेहद सुंदर, सुशील और चतुर भानुमति अर्जुन से विवाह करना चाहती थी. वह बेहद विनम्र स्वभाव की महिला थी. जब भानुमति बड़ी हुई तो उसके पिता ने उसका स्वयंवर रचने की योजना बनाई.
स्वयंवर में सभी क्षत्रियों को निमंत्रित किया गया था. वहीं दुर्योधन भी अपने मित्र कर्ण के साथ पहुंचा. मन में अर्जुन को पाने की इच्छा रखने वाली भानुमति उसका इंतजार कर रही थी. लेकिन स्वयंवर में अर्जुन नहीं गये. जब पधारे गई क्षत्रियों में से भानुमति अपना वर चुनने को मजबूर थी तब उसने एक सुंदर युवक को वरमाला पहनाने का निश्चय किया.
यह बात दुर्योधन से सहन नहीं हुई और वह उस स्वयंवर के बीच से जबरदस्ती भानुमति को उठा लाया. भानुमति किसी भी सूरत में दुर्योधन से व्यवहार नहीं करना चाहती थी लेकिन उसके अपहरण में दुर्योधन के मित्र कर्ण ने भी उसका सहयोग किया था. इधर राजा चित्रांगद भी अपनी बेइज्जती के कारण दुर्योधन से बेहद नाराज थे. लेकिन विवश भानुमति दुर्योधन को अपना पति स्वीकारने के अलावा कुछ और नहीं कर सकती थी.
जब दुर्योधन की बेटी के साथ भी वही हुआ !
समयाकाल में दुर्योधन और भानुमति के दो जुड़वा बच्चे हुए. जिनमें एक पुत्र था और एक पुत्री. भानुमति के पुत्र का नाम लक्ष्मण था जबकि पुत्री का नाम लक्ष्मणा.
अपनी माता की भांति लक्ष्मणा भी बेहद सुंदर और चतुर बालिका थी. वह बचपन से ही एक वीरांगना की भांति अपना जीवन जीती आई थी. जब वह बड़ी हुई तो एक मित्र के लिहाज से दुर्योधन ने लक्ष्मणा का विवाह कर्ण के पुत्र वृषसेन से करने की योजना बनाई. लक्ष्मणा भी उससे विवाह करना चाहती थी.
लेकिन कुरु वंश की गरिमा बनाए रखने के लिए दुर्योधन ने अपनी पुत्री के लिए एक कदम स्वयंवर का आयोजन किया जिसमें पहले से ही यह तय कर दिया गया था कि लक्ष्मणा किसे वरमाला पहनायेगी! योजना अनुसार दुर्योधन ने सभी क्षत्रियों को आमंत्रित किया.
लेकिन दुर्योधन की योजना तब विफल हो गई जब कृष्ण पुत्र साम ने जबरदस्ती लक्ष्मणा से विवाह कर लिया. उसने लक्ष्मणा का अपहरण उसी प्रकार से कर लिया जिस प्रकार से दुर्योधन ने भानुमति का किया था. गुस्साए दुर्योधन ने साम को कारागृह में डाल दिया. इस बात की जानकारी जब बलराम को लगी तब गुस्साए बलराम दुर्योधन पर प्रहार करने पहुंचे.
बलराम किसी भी सूरत में दुर्योधन को छोड़ने वाले नहीं थे. तभी दुर्योधन अपनी कृष्ण भक्त पत्नी भानुमति के पास पहुंचा क्योंकि इस गंभीर समस्या से केवल भानुमति ही दुर्योधन को छुड़वा सकती थी. बाद में भानुमति ने बलराम से बातचीत करके विधि विधान पूर्वक लक्ष्मणा की शादी साम से करने के लिए सभी को मनाया.
पुनर्विवाह कर मिटाई दुश्मनी –
महाभारत के विकराल युद्ध में भानुमति का पुत्र लक्ष्मण अर्जुन पुत्र अभिमन्यु से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गया था. अंत में भानुमती का पति दुर्योधन भीम के हाथों मारा गया था. जब युद्ध समाप्त हो गया और जनजीवन सामान्य रुख अपनाने लगा तब भानुमति ने कुछ ऐसा किया कि वह ऐतिहासिक हो गया.
दरअसल युद्ध समाप्ति के कुछ समय पश्चात भानुमति ने अर्जुन से पुनर्विवाह करने की इच्छा जाहिर की. उस समय ऐसा नियम था की विवाह करने से दो पक्षों के बीच का बेर समाप्त समझा जाता था. भानुमति ने यह फैसला इसलिए सुनाया क्योंकि वह सदा सदा के लिए कौरवों और पांडवों का वह बेर समाप्त करना चाहती थी जो भयंकर नरसंहार लेकर आया था. वह पूरे परिवार को एक बार फिर एक साथ लाना चाहती थी.
अर्जुन ने भी भानुमति का यह प्रस्ताव स्वीकार किया और उसे अपनी आठवीं पत्नी के रूप में अपनाया. कहा जाता है कि कौरवों और पांडवों के बीच का अद्भुत बेर केवल भानुमति ने ही दूर किया था इसीलिए भानुमति पर यह कहावत बैठ गई की “कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमति ने कुनबा जोड़ा”.