महाभारत के युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से युद्ध के मैदान में लड़ने वाले योद्धाओं के अलावा अप्रत्यक्ष रूप से कई महिलाओं ने अपना सहयोग दिया था. इनमें मुख्य रूप से द्रौपदी, कुंती, गांधारी, उत्तरा और सुभद्रा जैसी नारियां थी. लेकिन जिस देवी का नाम हम सर्वाधिक भूल जाते हैं वह थी “हिडिंबा”.
जैसा कि हम सभी जानते हैं हिडिंबा पांडू पुत्र भीम की पहली पत्नी थी. लेकिन एक राक्षसी होने के कारण वह भीम के साथ राज्य में नहीं रहती थी. वह भीम से अथाह प्रेम करती थी लेकिन बावजूद इसके उसने अपने त्याग और समर्पण के कारण कभी भी भीम को अपने पास आकर रहने के लिए नहीं कहा. राक्षसी होने के बावजूद उसने अपना जीवन मानव रूप में जिया. हिडिंबा भीम के पुत्र घटोत्कच को जन्म दिया था. जो महाभारत युद्ध में पांडवों की रक्षा करते करते वीरगति को प्राप्त हुआ था.
राक्षसी होने के बावजूद हिडिंबा को शस्त्र और शास्त्र दोनों का ज्ञान था. वह निति विशेषज्ञ भी थी और उसने अपने पुत्र घटोत्कच को इन सभी का ज्ञान बखूबी दिया था. वह जीवन भर अपने पति और परिवार से अलग रहे लेकिन बावजूद इसके उसने घटोत्कच को पिता समर्पित बनाया था.
समया काल में हिडिंबा ने घटोत्कच का विवाह भी संपन्न करवाया. घटोत्कच के पहले पुत्र का नाम हिडिंबा ने बरबरी रखा जबकि दूसरे पुत्र का नाम रखा अंजनपरवा. अपने पुत्र की भांति ही हिडिंबा ने अपने पुत्रों को भी बेहतर ज्ञान दिया था, इसी राह पर चलते हिडिंबा के दोनों ही पौत्र भी महाभारत के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए थे. लेकिन फिर भी हिडिंबा ने कभी इस बात का अफसोस नहीं जताया और अपने इरादों पर अडिग रही.
जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ और श्री कृष्ण युद्ध में विधवा हुई सभी नारियों से मिलने जा रहे थे तभी वह अंत में हिडिंबा के पास भी पहुंचे. श्री कृष्ण को देखकर हिडिंबा ने उन्हें सर्वप्रथम सादर प्रणाम किया. उस वक्त श्री कृष्ण ने हिडिंबा को देवी कह कर पुकारा. हिडिंबा ने कहा मैं एक राक्षसी हूं तो मुझे देवी कहने का क्या कारण है?
तब श्री कृष्ण ने कहा कि महाभारत के युद्ध में अपनी सर्वश्रेष्ठ भूमिका निभाने वाली स्त्री किसी देवी से कम नहीं हो सकती. जिस प्रकार सब मुझे महाभारत का कारण समझते हैं वैसे आप भी मुझे देखते ही कोई श्राप दे सकती थी लेकिन आप ने ऐसा कुछ नहीं किया. ऐसा कोई साधारण स्त्री नहीं कर सकती. यदि आपका पुत्र घटोत्कच रणभूमि में कर्ण के शस्त्र अपने ऊपर नहीं लेता तो निश्चित ही कर्ण अर्जुन का वध कर देता और धर्म हार जाता.
कुछ ही समय बाद घटोत्कच के तीसरे बेटे मेघवर्ण का जन्म हुआ था जिसका लालन पालन भी हिडिंबा ने उसी प्रकार किया था जैसे उसने अपने पुत्र और अन्य पौत्रों किया था. उसने मेघवर्ण को भी शूरवीर बनने के लिए प्रेरित किया. जिसके बाद समया काल में तपस्या मे लीन हिडिंबा ने अपने प्राण त्यागे. वर्तमान में हिडिंबा और घटोत्कच का मनाली में मंदिर भी है और उन्हें ग्राहम देवी के नाम से पूजा जाता है.