बेहतर अनुभवी भारतीय ऑफ स्पिनर हरभजन सिंह भले ही अब क्रिकेट से संन्यास ले चुके हैं लेकिन उनकी ख्याति अभी भी बनी हुई है. भज्जी के नाम से प्रसिद्ध हरभजन सिंह ने कुल 707 अंतर्राष्ट्रीय विकेटों के साथ भारत के दूसरे सबसे अधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज के रूप में सन्यास लिया. अपने समयाकाल में हरभजन सिंह की अपने प्रशंसकों के साथ कहीं बेहतरीन यादें रही है.
हरभजन सिंह ने 1998 में टेस्ट और वनडे क्रिकेट से अपने करियर की शुरुआत की थी और करीब 2 दशकों तक वह राष्ट्रीय टीम के लिए खेलने के बाद इस को अलविदा कहा था. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि हरभजन सिंह अब क्रिकेट जगत का सितारा बन चुके हैं जो हमेशा चमकने वाला है. लेकिन आज हम कुछ ऐसे अन्य क्रिकेटर के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं जिन्होंने हरभजन सिंह के साथ ही पदार्पण किया था लेकिन अब ऑफ स्पिनर से बहुत दूर हो चुके हैं.
गगन खोडा़ :– 1998 में हरभजन सिंह के साथ ही सलामी बल्लेबाज गगन खोड़ा ने भी पदार्पण किया था. गगन ने 1998 में बांग्लादेश और केन्या के खिलाफ कोका कोला त्रिकोणीय श्रंखला के दौरान अपने करियर में 2 वनडे मैच खेले और दो मैचों में 115 रन बनाए.
लेकिन उसके बाद उन्हें कभी भी टीम 11 में जगह नहीं मिली. लेकिन उनका एक लंबा और सफल घरेलू कार्य रहा है. गगन ने 132 प्रथम श्रेणी मैचों में 40 की औसत और उसमें 30 शतकों के साथ 119 लिस्ट ए गेम खेले हैं. गगन खोड़ा उसके बाद एमएसके प्रसाद के नेतृत्व में भारत के चयन पैनल का हिस्सा बने. लेकिन आज गगन खोड़ा का नाम पूरी तरह से गा यब हो चुका है.
निखिल चोपड़ा :– ऑफ स्पिनर निखिल चोपड़ा ने 1998 में ही कोका कोला त्रिकोणीय श्रंखला में अपना वनडे पदार्पण किया और 46 विकेट लेकर 39 वनडे मैच अर्जित किए. जिसके बाद सन् 2000 में उन्हें एक टेस्ट मैच खेलने का मौका भी मिला. लेकिन भारतीय टीम में स्पिनर के तौर पर जगह बनाए रखना उस समय एक मुश्किल काम था क्योंकि हरभजन सिंह सभी की पहली पसंद थे.
निखिल चोपड़ा के पास भी एक घरेलू कार्य रहा है. निखिल चोपड़ा दिल्ली और जिला क्रिकेट संघ के वरिष्ठ राज्य चयन पैनल का हिस्सा बने. इसके अलावा निखिल तब से ही समाचार चैनलों और खेल पर चर्चा करने वाले अन्य सोशल मीडिया आउटलेट्स पर एक बेहतरीन चेहरा रहे हैं.
अजय रात्रा :– 20 साल की उम्र में सुर्खियां बटोरने वाले हरियाणा के अजय रात्रा 2002 में एंटीगुआ में 115 रन की शानदार पारी के साथ टेस्ट शतक बनाने वाले सबसे कम उम्र के विकेटकीपर बने थे. इस उम्र तक यह उनका तीसरा टेस्ट मैच था.
लेकिन इसके बाद उनकी परफॉर्मेंस में कमी आई और उनकी फॉर्म और संख्या में भारी गिरावट आई जिसके बाद उनके करियर का अंत सिर्फ 6 टेस्ट कैप के साथ हुआ. उन्होंने 2002 में 12 वनडे और 6 टेस्ट मैच खेले थे. जिसके बाद उन्होंने 2013 तक घरेलू क्रिकेट के मैदान पर अपना व्यापार जारी रखा.
अजय रात्रा ने बाद में एक प्रोफेशनल कोच के तौर पर कमान संभाल ली और वह असम के मुख्य कोच बने. उन्होंने आईपीएल में दिल्ली के साथ काम किया है और वह एनसीए में भी नियमित नजर आए हैं.
रमेश पोवार :– उस समय में हरभजन सिंह और अनिल कुंबले की मौजूदगी में एक स्पिनर के लिए भारतीय एकादश में जगह बनाना काफी बड़ी बात थी. इस समय के दरमियान रमेश पोवार ने 2004 और 2007 के बीच दो टेस्ट और 31 वनडे मैचों में एक बेहतरीन कामयाबी हासिल की जिसके दौरान उन्होंने 40 विकेट चटकाए.
लेकिन इसके बाद उनके करियर में गिरावट आई हालांकि इसके बाद भी रमेश ने 2015 तक प्रथम श्रेणी क्रिकेट और 2018 तक अन्य सफेद गेंद वाले मैचों में गेंदबाजी करना जारी रखा था. जिसके बाद वह भारतीय वरिष्ठ महिला टीम के मुख्य कोच बने और वर्तमान तक है.
प्रज्ञान ओझा :– प्रज्ञान ओझा ने 2008 में इंटरनेशनल क्रिकेट से अपना पदार्पण किया था. जिसके दौरान हरभजन सिंह और अमित मिश्रा की अनुभवी जोड़ी के साथ ही साथ अश्विन और रवींद्र जडेजा की उभरती जोड़ी के साथ सभी प्रारूपों में अंतिम 11 में अपनी जगह बनाई थी.
2020 में सेवानिवृत्त होने से पहले ओझा ने 24 टेस्ट, 18 वनडे और 6 टी-20 में कुल 144 विकेट चटका दिए. भारत के लिए उनका आखिरी मैच 2013 में आया था जिसके बाद कुछ समय तक उन्होंने घरेलू क्रिकेट और आईपीएल में खेलना जारी रखा. अब वह आईपीएल गवर्निंग काउंसिल के सदस्य बन गए हैं और क्रिकेट खेलने से उन्होंने तौबा कर ली है.