आज अगर कोई दानवीरों की बात करता है तो सबसे पहले रतन टाटा,अजीम प्रेमजी और सोनू सूद जैसे लोगों के नाम शीर्ष पर आते हैं, लेकिन इनमें से किसी ने भी अपना सर्वस्व दान नहीं किया है.
इसीलिए आपको जानकर शायद आश्चर्य हो कि हमारे देश में एक ऐसा व्यक्ति भी मौजूद रहा है जिसने अपना सर्वस्व लोगों के कल्याण हेतु दान कर दिया.
सिर पर दुधिया साफा और फटी धोती वाले जगत मामा हमेशा हाथ में पैसों की थैली लेकर घूमते थे. यह महान संत रूपी इंसान जब निकलते थे तो गरीब निर्धन प्रतीत होते थे. लेकिन इनकी दरियादिली और सोच का हमें अंदाजा नहीं है.
जगत मामा का असली नाम पूर्णाराम छोड़ है और यह राजस्थान के नागौर जिले की जायल तहसील के राजोद गांव निवासी है. लेकिन यह हर किसी को भाणिया-भाणकी (बहन के बेटा-बेटी) कहकर कर पुकारा करते थे इसीलिए जगत मामा के नाम से मशहूर हुए.
300 बीघा जमीन के मालिक जगत मामा ने कभी शादी नहीं की. इन्होंने अपनी सारी जमीन स्कूल, ट्रस्ट और गौशाला निर्माण के लिए दान दे दी. जगत मामा कभी स्कूल नहीं गए थे लेकिन उन्हें शिक्षा से एक अनूठा जुड़ाव था इसीलिए वह शिक्षा को खूब प्रोत्साहन देते थे.
जीवन भर में उन्होंने कई विद्यार्थियों को बेहतर प्रदर्शन के लिए शिक्षण सामग्री मुहैया करवाई थी इसके अलावा उन्होंने चार करोड़ तक के नकद इनाम भी वितरित किए थे. कई बार उन्होंने विभिन्न स्कूलों में टूर्नामेंट और उत्सवों के दिनों में हलवा पूरी भी वितरित करवाए थे.