रेणुका आराध्य: अद्भुत संघर्ष की कहानी, अनाज के लिए भीख मांगने वाला व्यक्ति कैसे बना करोड़ों का मालिक?

कामयाब होना तो हर कोई चाहता है परन्तु केवल सपने देखने से सपने पूरे नहीं होते। दिन रात की मेहनत ही हमें कामयाबी की सीडी चढ़ा सकती है। जो शख्स चुनौतियों को चुनौती दे सके वही आगे बढ़ सकता है। आज हम एक ऐसे शख्स के बारे में बात करने वाले है जिसने कभी हार नहीं मानी।

इन्होंने अपने हौसलों को इतना मजबूत बना लिया था कि कोई उन्हें पीछे नहीं खींच पाया। किस्मत भी तभी साथ देती है जब इरादे मजबूत हो। जिंदगी जब असल रूप में लोगों के सामने आती है तो चौंका के रख देती है। इस कठिन परीक्षा में अपने दुर्भाग्य को वजह बना कर हार मान लेते या फिर कठिनाइयों को हरा कर अपना लक्ष्य हासिल करते है।

जिस इंसान को जिंदगी ने बहुत अच्छी तरह परखा वह आज एक हीरा बन चमक रहा है। इनकी जिंदगी का सफर लोगों को प्रेरणा देता है। यह कहानी है एक ऐसे शख्स की जो बचपन में घर-घर जा कर अनाज मांगता था और दसवीं कक्षा भी पास नहीं कर पाए थे।

जिसके पास एक समय में खाने के लिए भी पैसे नहीं थे वही आज 5 करोड़ की कंपनी का मालिक है। घनघोर गरीबी से निकल कर अपना करोड़ों का साम्राज्य स्थापित करने वाले वाली के जीवन की कहानी आज की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत है।

रेणुका आराध्य

इनका नाम रेणुका आराध्य है जो 50 वर्ष की उम्र के एक ऐसे व्यक्ति जिनकी कहानी लोगों के लिए प्रेरणा का काम करती है। इनका तालूक बैंगलुरु के नजदीक गोपसंद्र नाम के एक छोटे से गांव से है। इनके पिताजी एक पुजारी थे।

पूजा से बाद यह और इनके पिताजी गांव में घूम-घूम कर अनाज मांगते थे। उसी अनाज को बाजार में बेच कर वह अपने घर का गुजारा चलाते थे। 5-6 साल की उम्र में इनके पिता ने उन्हें दूसरों के घरों पर झाड़ू-पोंछे के काम पर लगा दिया। कुछ समय बाद उन्हें एक बुजुर्ग की सेवा करने का काम भी मिल गया था।

पारिवारिक जीवन

इसी बीच उनके पिता का देहांत हो गया और सारी पारिवारिक जिम्मेदारियाँ भी उनके सर पर थी। छोटे छोटे कंधों पर बोझ बढ़ने लग गया था। पढ़ने-लिखने के लिए समय न मिलने के कारण वह दसवीं में फेल हो गए। उसके बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और छोटे-मोटे काम करने लगे। इसी बीच वह बुरी संगत में भी फंस गए जहां जुआ खेलना और शराब पीना तो आम बात थी।

परन्तु उन्होंने ये सब छोड़ने का फैसला किया और शादी कर ली। मजबूरियां इतनी थी कि उनकी पत्नी को भी हेल्पर का काम करना पड़ा। जिंदगी ने उन्हें इतना परखा की ना जाने कौन-कौन से छोटे-मोटे काम कर के उन्हें जीवन व्यतीत करना पड़ा। उन्होंने कभी हार नहीं मानी और कैसे न कैसे करके 30,000 रुपये जोड़े और अटैचियों के कवर बनाने का काम शुरू किया। परन्तु उनका यह काम नहीं चला और सारा पैसा डूब गया।

कोशिश करने वालों की कभी हर नहीं होती!

कहते है न कि जिनके असफलता के कांटे पेरो में नहीं चुभते तब तक आदमी सफलता की उड़ान नहीं भर पाता। हार तब नहीं होती जब हम असफल हो जाए बल्कि तब होती है जब हम प्रयास करना छोड़ देते है। वास्तव में वही इंसान सफल होता है जो अंधेरों में भी अपनी राह बना ले।

रेणुका जी के जीवन ने तब करवट ली जब उन्होंने सब कुछ छोड़ कर ड्राइवर बनने की सोची। परन्तु उनके पास ड्राइविंग सीखने के पैसे भी नहीं थे। इसलिए उन्होंने अपनी शादी की अंगूठी गिरवी रख कर ड्राइविंग सीखी। उसके बाद उन्हें नौकरी मिली भी परन्तु ज्यादा समय तक नहीं रही। रेणुका नए ड्राइवर थे जिसके कारण उनसे एक एक्सीडेंट हो गया और उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया।

इसके बाद उन्होंने हॉस्पिटल में मृतक शरीरों को सँभालने का काम किया। परन्तु पैसे कम मिलने के कारण उन्हें गाइड का काम करना शुरू कर दिया। पैसे इकठे करते करते उन्होंने 1 गाड़ी खरीदी और कमाई से आगे चल कर उनके पास 5 गाड़ियाँ हो गयी। उसके बाद उन्होंने सिटी सफारी नाम से अपनी कंपनी शुरू कर ली ।

परन्तु कुछ बड़ा करने की चाह आज भी जागरूक थी। रेणुका जी इतने में खुश होने वाले नहीं थे। 2006 में उन्होंने इंडियन सिटी टैक्सी नाम की कंपनी को 6,50,000 में खरीद लिया। इसके लिए उन्हें अपनी कई गाड़ियाँ भी बेचनी पड़ी थी।

उन्होंने अपनी जिंदगी में पहली बार इतना बड़ा जोखिम उठाया था जो उन्हें कहाँ से कहाँ ले आया। उन्होंने अपना नाम देश भर में बना लिया। बाद में कंपनी का नाम उन्होंने प्रवासी कैब्स प्राइवेट लिमिटेड रख लिया।

यहाँ इनकी लगभग 1600 कैब्स चलती थी जिसको आज दुनिया भर जानती है। इनकी कहानी हमें बहुत प्रेरित करती है और बताती है कि हम मेहनत और संघर्ष के दम पर कुछ भी हासिल कर सकते है। ऊपरवाला भी उसी को आज़माता है जिसमें कुछ कर गुजरने की हिम्मत और हौसला होता है।