अक्षय पाटिल की कहानी- जो रोज करते है अपने पास की नदी की सफाई, कहां से मिली प्रेरणा-

प्रदूषण को रोकने के लिए कई लोग बड़ी-बड़ी ज्ञान की बातें बताते हैं और आग्रह करते हैं कि नदी- नालों की सफाई बरती जाए और अधिक से अधिक पेड़ -पौधे लगाए जाए. लेकिन जो बात आ जाए कि हमें स्वयं ही यह काम करना है तो हम आलस मार जाते हैं. लेकिन हमारे समाज में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो निष्ठा भाव से ऐसे काम बड़े शौक से करते हैं.

आज हम बात करने जा रहे हैं पनवेल में रहने वाले अक्षय पाटिल की जो लंबे समय से अपने पास की “गाढ़ी नदी” की सफाई कर रहे हैं. अक्षय पाटिल रोज सुबह आते हैं और घंटों तक नदी की सफाई करते हैं ऐसा वे काफी समय से कर रहे हैं. आखिर ऐसा क्यों कर रहे हैं ? उन्हें ऐसा करने से क्या लाभ है?

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पढ़िए पूरी जानकारी-

अक्षय पाटिल पनवेल के अलीबाग के रहने वाले हैं वे एक इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स रह चुके हैं. अक्षय पाटिल का कहना है कि वे हमेशा से ही डिफेंस सेवा में जाना चाहते थे लेकिन किसी कारणवश अक्षय ऐसा नहीं कर सके. जिसके बाद उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की.

इंजीनियरिंग के दौरान उनकी रिसर्च में समुंद्री कचरे की समस्या सामने आई. यानी कि नदियों में फैला कचरा आखिरकार जब समुद्र में चला जाता है तो यह समुद्री जीवन को नष्ट करता है. रोज भारी मात्रा में कचरा नदियों के सहारे समुद्र में पहुंच जाता है और जल में रहने वाले जीवो के अस्तित्व को प्रश्न चिन्हित कर देता है.

कचरा जिसमें की मुख्य रूप से प्लास्टिक, यानी प्लास्टिक दिनोंदिन हमारी जीवन संभावनाएं कम करता जा रहा है. अनुमान है 2050 तक समुंद्र में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक का कचरा मौजूद होगा जिसके कारण अधिकांश जलीय जीव प्रजातियां नष्ट हो जाएगी.

इसी मुद्दे से चिंतित होकर अक्षय पाटिल ने नदी- नालों को साफ करने की ठान ली. अक्षय बताते हैं कि वे एक ऐसी जगह से है जहां उन्होंने बचपन से ही नदिया देखी है. इसलिए नदियों से उनका विशेष जुड़ाव रहा है. इसलिए अक्षय ने अपने पास बहने वाली गाढ़ी नदी को स्वच्छ बनाने की योजना बनाई.

नदी के तट पर सुबह शाम कई लोग घूमने आते थे जो कई प्रकार का कचरा या तो नदी के पास फेंक देते या नदी के अंदर. शुरुआती दौर में अक्षय ने लोगों से बातचीत करना शुरू की. उन्होंने लोगों को समझाने की कोशिश की कि इससे नदी दूषित होगी और यह हमारा जीवन खतरे में डाल सकता है. कुछ लोग तो यह बात समझ जाते और कचरा नहीं फैलाते, जबकि कुछ सलाह देने पर भड़क उठते और कई बार तो लड़ाई पर भी उतर जाते.

उसके बाद अक्षय ने स्वयं नदी की सफाई करने का निश्चय किया. वे रोज सुबह आते हैं और घंटो तक नदी से कचरा बाहर निकालते हैं. शुरुआती दौर में उन्हें यह कठिन लगता था लेकिन कुछ दिनों बाद ही उन्होंने नदी से 18 टन कचरा बाहर निकाल लिया था. अब तक अक्षय ने कई हजार टन कचरा नदी से बाहर निकाल लिया है और वे ऐसा लगातार कर रहे हैं.

अक्षय का कहना है कि मैं रोज सफाई करते हैं और लोग वापस कचरा फैला देते हैं. लोग अपनी जिम्मेदारी बिल्कुल भी उठाना नहीं चाहते हैं. लेकिन फिर भी वे लगातार संघर्ष करेंगे. कचरा निकालने के बाद जो कचरा रीसायकल के लायक होता है, अक्षय वह कबाड़ी वाले को दे देते हैं वह कबाड़ी वाले से इसका कोई पैसा नहीं लेते है.

उसके बाद जो कचरा बसता है उसे वह एक जगह एकत्र करके नष्ट करने की कोशिश करते हैं. उनका कहना है कि उन्हें इस काम के कोई पैसे नहीं मिलते हैं लेकिन स्वच्छ वातावरण हमारा आने वाला कल है. यदि यह पृथ्वी नहीं रहेगी तो हमारा अस्तित्व संभव नहीं है. प्रत्येक नागरिक को चाहिए की वह अपने आसपास की प्राकृतिक संपदाओं की रक्षा करें और उनकी साफ-सफाई बरतें.

लेकिन यदि आप साफ सफाई नहीं कर सकते तो किसी भी जगह पर कचरा भी ना फैलाएं. यदि हम सब मिलकर कदम उठाएंगे तो हम वातावरण को बचा पाएंगे. इसलिए लोगों को कम से कम अपने आसपास की संपदाओं की रक्षा करनी चाहिए.