हमारे देश में आज कई ऐसे इंस्टिट्यूट है जो बच्चों से मोटी फीस वसूलते हैं. ऐसे कई कोचिंग इंस्टिट्यूट और स्कूल है जहां पर शिक्षा के लिए लाखों रुपए वसूले जा रहे हैं. ऐसी संस्थाओं ने शिक्षा को एक व्यवसाय का रूप दिया है और उसे आम बच्चे की पहुंच से बाहर किया है.
लेकिन आज हम जिस शख्स की बात कर रहे हैं वह बिना लालच के कई बच्चों की जिंदगी संवार रहा है. इस व्यक्ति का नाम है एस. महेंद्रन (S Mahendran) जो चेन्नई में एक ट्रैफिक सिपाही के तौर पर कार्यरत है.
अपनी ड्यूटी के अलावा महेंद्रन एक शिक्षक की भूमिका भी बखूबी निभा रहे हैं. वह अपनी ड्यूटी से समय निकालकर कई बच्चों को पढ़ाते हैं लेकिन खासतौर से वह एक बच्ची की जिंदगी संवारने में लगे हुए हैं.
इस बच्ची का नाम है दीपिका और यह सातवीं कक्षा में पढ़ रही है. दीपिका की मां फल बेचती है और उसके पिता गाना गाते हैं. दीपिका के पिता शोक सभाओं में गाना गाते हैं. जबकि उसकी माता फ्लावर बाजार में सब्जियों का ठेला लगाती है. दीपिका अपनी छह बहनों में पांचवें नंबर की है.
महेंद्र ने गणित में बीएससी किया है और वह दीपिका को गणित और तमिल पढ़ाते हैं. बाकी बच्चों को भी वह अपने घर या पुलिस चौकी में ही पढ़ाते हैं. दीपिका का भी परिवार आर्थिक रूप से काफी प्रताड़ित है और पूरा परिवार अपने कामकाज के बाद पुलिस चौकी के पास स्थित कार पार्किंग एरिया में सोता है.
सरकार द्वारा इस परिवार को एर्नावुर में एक घर भी आवंटित किया गया था, लेकिन यह एरिया शहर से लगभग 14 किलोमीटर दूर है. इस वजह से वहां उनकी रोजी-रोटी का कोई इंतजाम नहीं था और अपने काम के चलते इस परिवार को यहीं रहना पड़ा.
पूरा परिवार पार्किंग एरिया में सोता है जबकि नहाने, शौचालय जैसी आवश्यकताओं के लिए सार्वजनिक सुविधा का उपयोग करता है. दीपिका महेंद्रन के पास पढ़कर अपनी पढ़ाई पूरी कर रही है. दीपिका की बड़ी बहन दसवीं कक्षा में पढ़ रही है जबकि तीसरे नंबर की एक बहन बौद्धिक रूप से असक्षम है.