ट्रांसजेंडर महिला नूरी सलीम : जो 200 से ज्यादा बेसहारा बच्चों की मां, HIV पॉजिटिव बच्चों को पालती है

आज कल की दुनिया में लोग किसी बेसहारा को ₹10 देते हैं तो भी उससे पहले फोटो खिंचवा कर वीडियो शूट करवाते हैं. सोशल मीडिया के इस दुनिया में अक्सर कहीं ऐसे लोगों के नाम सामने आते हैं जो किसी की छोटी-मोटी सहायता करके भी खूब सुर्खियां बटोर लेता है.

वहीं कुछ लोग ऐसे हैं जिन्होंने सदी में महानायक की तरह काम किया है लेकिन कैमरे के सामने ना आने के कारण उन्हें शायद कोई नहीं जानता. ऐसा ही एक नाम हो सकता है दक्षिण भारत की ट्रांसजेंडर महिला नूरी सलाम का जो वर्तमान में 200 से ज्यादा बच्चों की अम्मा है. सबसे खास बात यह है की नूरी सलाम उन बच्चों को भी पालती है जो एचआईवी पॉजिटिव है और समाज से दरकिनार किए जा चुके हैं.

कौन है नूरी सलाम ?

जब नूरी सलाम पैदा हुई थी तब सब उन्हें एक लड़का समझते थे. उन्होंने अपने जीवन में 13-14 वर्ष की उम्र तक एक लड़के की भांति जीवन जिया था. लेकिन जैसे-जैसे वह लड़का बड़ा हुआ ऐसा महसूस किया गया कि यह सामान्य लड़का नहीं है.

उनके लक्षण और बोलचाल के ढंग अन्य सभी लोगों से भिन्न थे इसी वजह से कहीं ना कहीं उन्हें उसी समय समाज से दरकिनार किया जा चुका था. नूरी सलाम बताती है की जब वह 4 साल की थी तब ही उनकी माता का निधन हो गया था.

इसके बाद उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली लेकिन उनकी दूसरी माता उनके साथ कभी ठीक से पेश नहीं आती थी. एक तरफ समाज की प्रताड़ना और दूसरी तरफ घर का असम्यक माहौल वजह बन गया नूरी के घर छोड़ने की. जब नूरी 13 साल की थी तब वह घर से भाग गई.

दुनिया की भीड़ में धक्के खाते खाते अब वह लड़के से लड़की बनने को तैयार थी. 28 की उम्र तक आते-आते वह पूरी तरह से एक औरत की भांति अपना जीवन जीने लगी थी. इस बीच उन्हें हजारों लोगों के ताने सुनने पड़े थे. जब तक वह 34 वर्ष की हुई वह भारत की तीसरी रजिस्टर्ड एचआईवी पॉजिटिव महिला बन गई. अब उनका जीवन और कठिन हो गया क्योंकि एचआईवी के बाद समाज उन्हें अपनाने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं था.

लेकिन उन्होंने अपना जीवन नए सिरे से शुरू किया तमाम मुश्किलों के बावजूद उन्होंने साउथ इंडियन पॉजिटिव नेटवर्क नामक एक संस्था की स्थापना की जो उन लोगों को सहारा देने में कामयाब हुई जिनके पास कोई परिवार नहीं था. नूरी सलाम ने अपनी संस्था की मदद से बेसहारा बच्चों को पालना शुरू किया. आज वह एक बड़ी संस्था का संचालन पिछले 17 साल से कर रही हैं. अब वह सभी बेसहारा लोगों की “अम्मा” बन चुकी है.