मातिल्दा कुल्लू : उड़ीसा की आशा कर्मचारी जो शामिल हुई फॉर्ब्स की मजबूत महिला व्यक्तित्व की सूची में-

मीडिया एवं प्रकाशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली “फॉर्ब्स पत्रिका” ने हाल ही में भारत देश की मजबूत महिला व्यक्तित्व की सूची प्रकाशित की है. मशहूर पत्रिका फॉर्ब्स कि जब भी सूची प्रकाशित होती है तो हम उसमें एक से एक मशहूर लोगों के नाम देखते हैं.

इसी कड़ी में मजबूत महिला व्यक्तित्व के तौर पर फॉर्ब्स ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की पूर्व चेयरमैन अरुंणदती भट्टाचार्य और अभिनेत्री सान्या मल्होत्रा जैसी महिलाओं का नाम शामिल किया है. लेकिन इसके साथ ही फॉर्ब्स की सूची में उड़ीसा की एक सामान्य आशा कर्मचारी भी शामिल है, जिनका नाम है “मातिल्दा कुल्लू”.

एक सामान्य आशा कर्मचारी जिस की तनख्वाह उसका घर चलाने के लिए भी पर्याप्त नहीं है आखिर कैसे वह फॉर्ब्स की सूची में मजबूत महिला व्यक्तित्व बनी?

क्या होती है आशा कर्मचारी ?– 2005 में केंद्र सरकार ने “राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन योजना” के तहत आशा कर्मचारी की पोस्ट जारी की थी. यह पहली बार था जब वह सरकार ने आशा कर्मचारी की भर्ती निकाली थी, इसी दरमियान लगभग 10 लाख लोगों को इसमें रोजगार दिया था.

आशा कर्मचारी मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्र में स्वास्थ्य से जुड़े काम करती है, इसके अलावा गर्भवती स्त्री के साथ भी वह उपस्थित होती है. लेकिन इनका वेतन बेहद सामान्य है, इन्हें मात्र 4 से 5 हजार रुपए दिए जाते हैं. इसी प्रकार की सामान्य आशा कर्मचारी है मातिल्दा कुल्लू, जिन्हें तनख्वाह के तौर पर मात्र 4500 रुपए प्राप्त होते हैं.

आखिर मातिल्दा कुल्लू का नाम फॉर्ब्स की सूची में क्यों शामिल ? 45 वर्षीय मातिल्दा उड़ीसा के आदिवासी बहुल क्षेत्र सुंदरगढ़ जिले के घरघड़बहल गांव में 15 साल पहले एक आशा वर्कर के तौर पर शामिल हुई थी. आदिवासी क्षेत्र होने के कारण इलाका बेहद पिछड़ा था, मातिल्दा स्वयं भी एक आदिवासी परिवार से आती थी.

यहां अस्पताल एवं अन्य कोई भी जरूरी सुविधा उपलब्ध नहीं थी, कुछ समय बाद अस्पताल तो बन गया लेकिन अस्पताल में ना तो पर्याप्त डॉक्टर थे और ना ही चिकित्सा सुविधा. वास्तव में यहां के लोग अस्पताल जैसी चीजों में यकीन ही नहीं करते थे.

यहां लोग हर छोटी से छोटी एवं बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान केवल “काला जादू” मानते थे. यानी कोई भी समस्या होने पर लोग सीधा बाबा के पास भागते थे, इसी कारण गांव में कई लोग अपनी जान गवां बैठे थे. गर्भवती स्त्री को भी अस्पताल नहीं ले जाया जाता था जिसके कारण महिलाओं के स्वास्थ्य में बेहद गिरावट थी.

कुछ समय तक मातिल्दा ने आशा वर्कर के तौर पर खूब संघर्ष किया था क्योंकि लोग उनकी नौकरी और स्वयं उन्हें तवज्जो नहीं देते थे. उनके लिए मानो यह कुछ नहीं था. लेकिन मातिल्दा अपने गांव की सूरत बदलने की ठान ली थी. वह घर-घर जाकर हॉस्पिटल सुविधाओं का प्रचार करने लगी, उसने जबरन लोगों को दवाइयां देना शुरू कर दिया.

इसके साथ ही वह लोगों को समझाने का प्रयास करती थी कि काला जादू जैसी चीजें बकवास है और इनमें पड़ना खतरे की घंटी है. मातिल्दा निरंतर स्वास्थ्य योजनाओं का प्रचार करती रही, कुछ वर्षों में उसने लोगों को अस्पताल आना सिखा दिया था. अब यह समय था जब लोग अस्पताल में यकीन करने लगे थे, और अपनी समस्याएं लेकर डॉक्टर के पास आने लगे थे.

लोगों ने जब अस्पताल आने में रुचि ली तब वहां डॉक्टर की संख्या भी बढ़ा दी गई इसके साथ ही कुछ जरूरी सुविधा भी उपलब्ध करा दी गई. यह मातिल्दा के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी, इसी कारण मातिल्दा की गांव में एक जिम्मेदार स्वास्थ्य कर्मी के तौर पर चर्चा होने लगी.

कोरोना काल में अहम भूमिका :– कोरोना काल में भी मातिल्दा कुल्लू ने अपनी अहम भूमिका निभाई. शुरुआत में ऐसा होता था कि लोगों में कोरोनावायरस को लेकर जानकारी नहीं थी, उनके लिए यह मानो कोई बड़ी बात नहीं थी. जिसके बाद मातिल्दा ने लोगों को घर-घर जाकर समझाना शुरु किया और उन्हें बताया कि कोरोना कितना खतरनाक है!

वह लगातार लोगों को एक जगह इकट्ठा होने के लिए रोकती रही, अपनी साइकिल पर सवार होकर वह लगातार अपनी सक्रिय भूमिका निभाती रही. वह लोगों को पकड़ पकड़ कर अस्पताल ले जाती और उनकी स्वास्थ्य जांच करवाती. जिन लोगों को बुखार, जुकाम और कोरोना के लक्षण प्रतीत होते उनके लिए उपयुक्त दवाई भी देती.

उसने पूरे कोरोना काल में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई. जब बात टीकाकरण की आई तब उसने एक बार फिर लोगों को टीकाकरण के लिए समझाया. स्वयं घंटों संघर्ष करके उसने पूरे गांव का टीकाकरण करवाया, मातिल्दा स्वयं यह दावा करती है कि उन्होंने अपनी निगरानी में अपने पूरे गांव का टीकाकरण करवाया है.

लगातार 15 साल से इतने कम वेतन में इतना समर्पण और मेहनत ने उनको फॉर्ब्स की सूची तक पहुंचाया. मातिल्दा कुल्लू वास्तव में एक मिसाल है, जो बताता है कि हमें किस प्रकार अपने कार्य के प्रति समर्पण रखना चाहिए. कड़े संघर्ष के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी और लोगों के तिरस्कार के बावजूद भी उन्होंने उनका तिरस्कार नहीं किया, उल्टा उन्हें लगातार समझाया और काला जादू जैसी दकियानूसी चीजों से मुक्त करवाया. यह हमारे समाज की एक मजबूत आधुनिक स्त्री का प्रतीक है जो बताता है कि यदि ठान लिया जाए तो ना तो कोई मुसीबत बड़ी है और ना ही तिरस्कार.