भिखारी की झोपड़ी में लगा देखा AC, पुलिस ने तलाशी ली तो असलियत देखकर यकीन नहीं हुआ

हमारे समाज के दबे कुचले और बेहद गरीब लोग जिनकी दो वक्त की रोटी खाने की भी हैसियत नहीं होती, अंत में उनके पास लोगों से भीख मांगने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं बचता. ऐसे लोग सड़कों पर अपना जीवन व्यापन करते हैं और जो दूसरे दो चार पैसे दे देते हैं तो उसी में खुश होकर अपना जीवन निकाल देते हैं. भिखारियों का यह मंजर मेट्रो सिटी में बड़ी आसानी से देखा जा सकता है. दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में करोड़ों लोग भीख मांग कर अपना जीवन निकाल रहे हैं.

यूं तो माया नगरी मुंबई में लाखों लोग अपने सपने लेकर जाते हैं और कई लोगों के सपने सच भी होते हैं. लेकिन जब बात की जाए मुंबई की लोकल ट्रेनों की तो यहां चढ़ने वालों का मंजर यह स्पष्ट दिखाता है कि मुंबई की जनता कितनी परेशान है! मुंबई की लोकल ट्रेन में सफर करना जैसे अपने आप में कोई बड़ा संघर्ष है. इन्हीं लोकल ट्रेन में रोजाना हजारों की तादाद में भिखारी घूमते हैं. आज हम मुंबई की लोकल ट्रेन के एक भिखारी बीरधी चंद आजाद के बारे में बात करने जा रहे हैं.

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आइए जानते हैं “आजाद” का पूरा किस्सा:

आजाद अपने परिवार के साथ बचपन से ही मुंबई की झुग्गी झोपड़ियों में रह रहा था. उसका बचपन बेहद गरीबी में बीता था, एक समय आया जब उसके माता-पिता उसे वहीं मुंबई में छोड़कर कहीं भाग गए. उस समय आजाद कोई 10-12 साल का छोटा बच्चा था. अब मजबूर आजाद के पास लोगों से भीख मांगने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं था.

आजाद सड़कों पर भीख मांग कर कभी अपना पेट भर लेता तो कभी भूखा सो जाता. समय बीता और आजाद ने भीख मांगने को ही अपना गंतव्य बना लिया. अब उसने मुंबई की लोकल ट्रेनों में भीख मांगना शुरू कर दिया था. करीब 25 साल तक आजाद ने मुंबई की लोकल ट्रेन में भीख मांग कर अपना काम निकाला. शायद उसकी किस्मत अच्छी थी कि लोग उसे रोजाना भीख देते थे, या शायद ऐसा भी हो सकता है कि आजाद के पास भीख मांगने की एक अनूठी कला थी.

जब हो गई आजाद की मौत:-

अब एक दिन आजाद जब रेलवे ट्रैक पार कर रहा था तब अचानक से वह ट्रेन से टकरा गया. जोर से धक्का लगने की वजह से आजाद उल्टे बल गिर गया.उसे हॉस्पिटल ले जाया गया लेकिन फिर भी शायद अब उसकी जीवन लीला समाप्त हो चुकी थी. इस दुर्घटना में आजाद की मौत हो गई. उसका शव 2 दिन तक हॉस्पिटल में ही पड़ा रहा, जहां पोस्टमार्टम करने के बाद पुलिस वालों ने उसके घरवालों को आगाह करने के लिए सूचना भी छपाई. लेकिन 5 दिन बीत जाने के बाद भी आजाद के परिजनों में से कोई भी नहीं आया. अब पुलिस आजाद के घर और घर वालों का पता लगाने में जुटी हुई थी.

पुलिस वाले जब पहुंचे “आजाद” की झोपड़ी पर:

पुलिस वाले जब आजाद के ठिकाने पर पहुंचे तो उन्होंने वहां छोटी सी एक झोपड़ी देखी थी जिसकी उन्हें उम्मीद थी. वहां आसपास से किसी से पूछा तो आस पड़ोस वालों ने बताया कि आजाद के साथ कोई नहीं रहता और वह यहां सालों से अकेला ही रह रहा है. तो पुलिस वालों ने सोचा कि जब यहां कोई नहीं है तो यहां घूमने का क्या मतलब! लेकिन तभी एक पुलिसकर्मी ने आजाद की झोपड़ी में AC लगी देखी. यह देखकर पूरी टीम आश्चर्य से भर गई.

जब पुलिस वालों ने झोपड़ी में जाकर देखा तो वहां तलाशी लेने पर उनके होश उड़ गए. आजाद की झोपड़ी में लाखों रुपए के सिक्के बरामद हुए. इसके अलावा वहां उन्हें एक कागजी सबूत मिला जिसमें आजाद के अकाउंट में 8 लाख जमा करवाने की बात की गई थी. इसके अलावा दो लाख से ज्यादा धनराशि के उन्हें 100 और 500 के नोट भी मिले.

पुलिस टीम ने 8 घंटों की कड़ी मशक्कत के बाद सभी सिक्कों को गिना और सभी सिक्के दो लाख से ज्यादा धनराशि के थे. पुलिस वाले हैरत में थे कि आखिर भीख मांग कर जीवन यापन करने वाले आजाद के पास इतना माल कहां से आया? शायद आजाद ने अपनी भीख मांगने की कला में सफलता हासिल कर ली थी जिसके कारण वह इसे कमाई का साधन बना चुका था और इसी कला ने उसको मालामाल कर रखा था.