आखिर कैसे एक छोटी सी मिठाई की दुकान से शुरुआत करके हल्दीराम बना अरबों की कंपनी

भारत की सबसे बड़ी देसी फूड कंपनी हल्दीराम के बारे में कुछ भी कहने की आवश्यकता शायद नहीं है. आज इनका नाम इतना चमक चुका है की हल्दीराम की एक फ्रेंचाइजी लगभग 25 लाख से ज्यादा मूल्य की है.

फूड कंपनी हल्दीराम की कुल संपत्ति वर्तमान में 3 बिलियन डॉलर से भी ज्यादा है. इसके अलावा यह वर्तमान में 80 देशों से अपने व्यापारिक नाते रखता है. भारत के बीच सभी मुख्य शहरों में इसके बड़े-बड़े रेस्टोरेंट्स देखे जा सकते हैं. इसीलिए आइए जानते हैं आखिर हल्दीराम के मालिकों ने यह मुकाम कैसे हासिल किया?

हल्दीराम की स्थापना 1941 में बीकानेर के रहने वाले गंगा विशन अग्रवाल ने की थी. जिन्हें घर पर प्यार से हल्दीराम पुकारा जाता था. गंगा विशन अग्रवाल का परिवार बीकानेर में पहले से ही एक मिठाई की दुकान चला रहा था जिसमें बीकानेर की प्रसिद्ध भुजिया भी मिलती थी. अपने इस पारंपरिक दुकान पर गंगा विशन अग्रवाल ने महज 11 साल की अवस्था में चलाना शुरु कर दिया, उस वक्त वह दुकान पर साफ-सफाई और सब्जियां काटने जैसे काम करते थे.

छोटी अवस्था से ही गंगा विशन अग्रवाल कुछ बड़ा और अच्छा करना चाहते थे जिसके बाद उन्होंने भुजिया पर तरह-तरह के एक्सपेरिमेंट किए क्योंकि उस समय बीकानेर में भुजिया का अच्छा क्रेज था. इसीलिए वह एक अच्छी और अलग भुजिया बनाना चाहते थे. आखिरकार उन्होंने इस काम में सफलता पाई और उन्होंने अपनी बनाई भुजिया का नाम रखा डूंगर भुजिया. इसी के साथ हल्दीराम की स्थापना हो चुकी थी, इस वक्त तक हल्दीराम ने अपना कारोबार बीकानेर के अलावा नागपुर और कोलकाता तक भी फैला दिया था.

लेकिन इस कंपनी में 1960 के दशक में एक बार फिर क्रांति आई और क्रांति लाने वाले थे हल्दीराम के पोते शिवकिशन अग्रवाल. शिवकिशन अग्रवाल ने अपनी कंपनी की मार्केटिंग करने का फैसला किया. क्योंकि नागपुर शहर में इनका कारोबार कुछ खास अच्छा नहीं चल रहा था. समस्या यह थी कि महाराष्ट्र में लोग भुजिया में ज्यादा रुचि नहीं रखते थे. मिठाइयों में भी वह लोग सामान्य मिठाईयां खरीदना पसंद करते थे.

जिसके बाद शिवकिशन अग्रवाल ने अपनी बनाई काजू कतली को सभी लोगों को फ्री सैंपल देकर परोसना शुरू किया. इस तरह से उन्होंने अपनी मिठाइयों का प्रचार लोगों तक किया. इसके अलावा उन्होंने अपने मैन्यू में इडली, डोसा और कई साउथ इंडियन चीजों के अलावा समोसा, कचोरी को भी जोड़ दिया. जिसके बाद महज 3 साल में ही हल्दीराम की कमाई आसमान छूने लगी.

शिव किशन अग्रवाल के बाद हल्दीराम को ऊंचाइयों पर ले जाने का काम किया दूसरी पीढ़ी के वारिस मनोहर लाल अग्रवाल ने. जिन्होंने गेम चेंजर के तौर पर कंपनी की बढ़िया पैकिंग पर जोर दिया. बढ़िया पैकिंग के जरिए बहुत यह सिद्ध करना चाहते थे कि खाने में स्वाद के साथ ही साथ उनका प्रोडक्ट काफी ज्यादा विश्वसनीय है. उनकी योजना सफल हुई और बेहतरीन पैकिंग के कारण जल्दी ही भारी मात्रा में कस्टमर इस कंपनी से जुड़ गए.