उधार पैसों से चार भाइयों ने शुरू की थी Hero Cycle, आज है दुनिया की सबसे बड़ी साइकिल कंपनी

अगर ठान लिया जाए तो क्या कुछ नहीं किया जा सकता ! यह कहानी शुरू होती है पाकिस्तान के कमालिया में रहने वाले बहादुर चंद मुंजाल जो एक अनाज की दुकान चलाकर अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे थे. इनके घर से अपने चार बेटे, जिनके नाम थे सत्यानंद मुंजाल, ओमप्रकाश मुंजाल, बज्र मोहन मुंजाल और दयानंद मुंजाल. सब कुछ ठीक चल रहा था कि इधर से सरकार का फरमान आया कि देश को दो हिस्सों में बांट दिया गया है, जिसके बाद उन्हें पाकिस्तान के उस क्षेत्र से वापस लौटना पड़ा और वह पंजाब के लुधियाना आ बसे.

लुधियाना आने के बाद पूरे परिवार के सामने रोजगार की समस्या थी इस वजह से मुंजाल परिवार ने गलियों और फुटपाथ पर साइकिल के पुर्जे बेचने का काम किया. कुछ समय बाद उनके दिमाग में आया कि वह पार्ट्स खरीदने बेचने की बजाय खुद साइकिल के पार्ट बनाएं.

1956 का दौर था जब भाइयों ने बैंक से ₹50000 का लोन लिया और अपनी साइकिल पार्ट्स बनाने की एक छोटी सी फैक्ट्री लुधियाना में स्थापित की. यहीं से शुरू हुआ था हीरो साइकिल का सफर, क्योंकि इस यूनिट का पहली बार नाम रखा गया था हीरो साइकिल.

कुछ ही समय बाद उन्होंने सोचा कि पार्ट्स बनाकर बेचने से तो अच्छा है कि वह खुद साइकिल का निर्माण करें. अब यह भाई साइकिल बनाकर बेचने लगे थे और वह एक दिन में 25 साइकिल बनाने लगे. कुछ समय तक काम ज्यादा खास नहीं चला लेकिन जल्द ही इन भाइयों की गाड़ी पटरी पर आ गई और उनकी साइकिल की मांग बढ़ने लगी.

लगातार 10 साल तक मेहनत करने के बाद 1966 तक यह कंपनी एक साल की एक लाख साइकिल तैयार करने लगी. अगले 10 साल तक इनकी क्षमता एक साल में 5 लाख साइकिल तैयार करने तक बढ़ गई. 1986 तक हीरो साइकिल हर साल 22 लाख से ज्यादा साइकिलों का उत्पादन करने लगा. यह अपने आप में एक बड़ा रिकॉर्ड था और अब हीरो दुनिया की सबसे बड़ी साइकिल कंपनी बन चुकी थी.

कभी महीने की 25 साइकिल बनाने वाली हीरो 1980 के दशक तक हर रोज 19000 साइकिल तैयार करने लगे. अपनी इसी विशेष क्षमता के कारण 1986 में हीरो साइकिल का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दुनिया की सबसे बड़ी साइकिल उत्पादक कंपनी के रूप में दर्ज हुआ.