राजस्थान का चमत्कारी करणी माता का मंदिर, जहां चूहे ज्यादा इंसान कम

राजस्थान के बीकानेर में करणी माता का बेहद प्रसिद्ध मंदिर है. यह मंदिर अपने अद्भुत चमत्कारों की वजह से बेहद प्रसिद्ध है, मंदिर में वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. लगभग पिछले 650 सालों से इस मंदिर की ख्याति लगातार बनी हुई है और आने वाले वर्षों में भी इसी प्रकार बनी रहेगी.

बताया जाता है कि करणी माता का जन्म जोधपुर क्षेत्र के चारण परिवार में हुआ था, उन्होंने अपने जीवन काल में वर्तमान में स्थित मंदिर के पास गुफा में अपने इष्ट देव को समर्पित तपस्या की थी. कहा जाता है करणी माता मां जगदंबा का साक्षात अवतार थी, उन्होंने अपने जीवन काल में विभिन्न चमत्कार किए थे.

जब जोधपुर के राजा राव जोधा से उनके बेटे राव बीका की लड़ाई हो गई थी तब राव बीका ने जोधपुर रियासत छोड़ दी. अब राव बीका अपना खुद का दूसरा साम्राज्य बसाना चाहते थे, तब वह करणी माता के पास आए क्योंकि उन्हें करणी माता में अपार श्रद्धा थी. तो करणी माता ने उन्हें उस स्थान की ओर संकेत देकर कहा जहां वर्तमान का बीकानेर शहर स्थित है कि तुम यह अपना नया साम्राज्य बताओ और तुम्हारा यह नया साम्राज्य जोधपुर रियासत से भी ज्यादा महान होगा.

करणी माता के आदेश अनुसार राव बीका ने बीकानेर शहर बसाया और यह पहली बार था जब अपनी रियासत से अलग हुआ एक साम्राज्य इतना फला फूला. मां करणी माता मानव जाति के कल्याण और पशु पक्षियों के संरक्षण में विश्वास रखती थी, पशु पक्षियों के संवर्धन के लिए उन्होंने देशनोक में 10000 बीघा जमीन संरक्षित की थी.

वहां का चरवाहा उन्होंने दशरथ मेघवाल नामक व्यक्ति को चुना जो उस समय कथित नीची जाति से तालुकात रखता था. क्योंकि करणी माता मानव मात्र को एक समान मानती थी. करणी माता ने पुंगल के राजा राव शेखा को मुल्तान की जेल से छुड़वाया और उसकी बेटी रंग कंवर का विवाह राव बीका से करवाया.

चमत्कारी जीवन जीने के बाद 1595 में चैत्र शुक्ल नवमी को करणी माता संसार से ज्योतिर्लिंन हुई जिसके बाद चैत्र शुक्ला 14, 1595 से लगातार यहां पूजा हो रही है. जिस गुफा में उन्होंने तपस्या की थी वह मंदिर परिसर में स्थित है और उसी स्थान पर मंदिर बनाया गया है. यह मंदिर बीकानेर से 30 किलोमीटर दूर देशनोक में स्थित है, जिसे चूहों का मंदिर भी कहा जाता है.

दरअसल मंदिर क्षेत्र में 25000 से ज्यादा चूहे हैं, आश्चर्य की बात है कि इतने चूहे होने के बावजूद यह किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. मंदिर में चांदी के किवाड़, सोने के छात्र और चूहों के लिए भोजन हेतु चांदी की बड़ी पराते भी मौजूद है.