जीवन-मृत्यु सृष्टि का अटल सत्य है, जिसका यहां जन्म हुआ है उसका एक ना एक दिन विनाश निश्चित है. यह बात जानते हुए भी हम सभी लोग हमारे किसी अपने के जाने पर खूब शोक जताते हैं, सभी समुदाय मिलकर खूब रोना रोते हैं और अपना दुख प्रकट करते हैं.
लेकिन हमारे बीच एक समुदाय ऐसा भी है जो अपने किसी साथी के जाने पर शोक नहीं मनाता है, वास्तव में हम बात कर रहे हैं “किन्नर समुदाय” की जो अपने किसी साथी के मृत्यु पर शोक के बजाय जश्न मनाता है. कुछ ऐसी ही रोचक बातों के कारण किन्नर समुदाय की दुनिया वास्तव में इस दुनिया से अलग होती है, उनके रीति रिवाज, उनकी मान्यताएं बाकी सभी समुदायों से काफी भिन्न है.
जिनमें से एक बड़ी मान्यता यह भी है कि जब किसी किन्नर की मृत्यु हो जाती है तो उसका अंतिम संस्कार केवल रात में ही किया जाता है, जबकि सनातन धर्म के नियमों के अनुसार किसी भी व्यक्ति का अंतिम संस्कार सूर्यास्त के पश्चात नहीं किया जा सकता. आखिर क्या कारण है कि किन्नर समुदाय अपने साथ ही का अंतिम संस्कार केवल रात में ही करता है?
जानिए समस्त रहस्यों का उद्घाटन “गरुड़ पुराण” के अनुसार :– गरुड़ पुराण के अनुसार किन्नर समुदाय के पास अनेक विशिष्ट आध्यात्मिक शक्तियां होती है. इसीलिए कहा जाता है कि किन्नर की दुआ और बद्दुआ दोनों ही महत्वपूर्ण होती है.
यही कारण है कि किन्नर को अपनी मृत्यु का आभास पहले ही हो जाता है. यानी कि एक किन्नर को पहले ही मालूम चल जाता है कि अब शायद उसका अंतिम दिन आने वाला है. जब उन्हें इस बात का आभास होने लगता है तब वह बाहर आना जाना बंद कर देता है.
कहा जाता है कि अपनी मृत्यु का आभास प्राप्त करने के बाद किन्नर कभी बाहर आता जाता नहीं है. इसके अलावा वह खाना भी बंद कर देता है, तथा केवल जल के द्वारा ही अपना काम चलाता है. यह वह समय होता है जब उस किन्नर का अंतिम समय बेहद नजदीक हो, इसीलिए इस समय एक किन्नरों परम पिता परमेश्वर से केवल यही प्रार्थना करता है कि अब जल्दी ही उसे इस शरीर से मुक्ति मिल जाए.
वास्तव में किन्नर प्रार्थना करता है कि जल्दी से उसे मृत्यु प्राप्त हो जाए. साथ ही वह परमेश्वर से यही प्रार्थना करता है कि किसी भी व्यक्ति को किन्नर के रूप में जन्म ना मिले. किन्नर समुदाय के आराध्य “अरावन देव” माने जाते हैं इसलिए किन्नर समुदाय इस समय केवल अरावन देव की ही पूजा उपासना करते रहते हैं.
किन्नर अपनी मृत्यु की कामना इसलिए करते हैं क्योंकि वे नहीं चाहते कि किसी भी मनुष्य को किन्नर के रूप में नर्क का आभास करना पड़े. हमारा समाज सदियों से किन्नरों के प्रति बेहद घटिया व्यवहार करता आया है, हमारे समाज को किन्नरों की भावनाओं तथा उनकी सुविधाओं का कोई एहसास नहीं होता इसके अलावा समाज के सभी लोगों किन्नरों का खूब बहिष्कार करते हैं.
यही कारण है कि किन्नर समुदाय अपने साथी की मृत्यु का शोक नहीं जताते हैं, इसके बजाय वे अपने साथी की मृत्यु का जश्न मनाते हैं. भगवान से प्रार्थना करते हैं कि अगले जन्म में इस आत्मा को एक सशक्त मनुष्य के रूप में जन्म मिले और वह भी समाज के अन्य लोगों की तरह एक सामान्य जीवन जी सके. इसके अलावा एक किन्नर को कभी जलाया भी नहीं जाता बल्कि उसे दफनाया जाता है.
लेकिन दफनाने की यह प्रक्रिया भी केवल रात में ही की जाती है. यदि सवेरे 7:00 भी किसी किन्नर की मृत्यु हो जाती है तो उसका अंतिम संस्कार भी रात्रि में ही किया जाएगा. रात्रि में भी उस समय किया जाएगा जब आसपास कोई भी मनुष्य सक्रिय ना हो.
जब किसी किन्नर की मृत्यु हो जाती है तो आसपास के सभी लोगों को पहले ही सूचित कर दिया जाता है कि एक किन्नर की मृत्यु हो गई है इसलिए उसका अंतिम संस्कार किया जाना है. इसका कारण गरुड़ पुराण में इस प्रकार बताया गया है की किन्नर का अंतिम संस्कार देखने वाले व्यक्ति को भी अगले जन्म में किन्नर योनि प्राप्त होती है.
यानी कि अंतिम संस्कार देखने वाले मनुष्य को भी अगले जन्म में किन्नर होना पड़ता है. इसलिए किन्नर समुदाय कभी भी अपने किसी साथी की लाश को अन्य लोगों के सामने पेश नहीं करता है. किन्नर समुदाय इस बात का खास ध्यान रखता है कि जब उनके साथी का अंतिम संस्कार किया जा रहा हो तब कोई भी मनुष्य उसे ना देखें.
कहा जाता है कि यदि कोई मनुष्य से देखने की कोशिश तक करें तो भी उसके लिए यह मुश्किलों से भरा हुआ है. अपनी मान्यताओं के कारण ही किन्नर समुदाय अपने साथी का अंतिम संस्कार बेहद गुप्त तरीके से करते हैं. इसके अलावा वे अपने साथी के शव पर केवल एक सफेद कपड़ा लपेटते हैं उस पर किसी प्रकार का कोई बंधन नहीं बांधते हैं.
इसके पीछे यह मान्यता है कि किन्नर योनि में उसने खूब बंधनों का और प्रताड़ना का सामना किया है इसलिए अंतिम समय में उसकी आत्मा मुक्त रूप से मोक्ष प्राप्त कर सके, उस पर किसी भी प्रकार का बंधन बांधा जाना ठीक नहीं है.