पूरे भारत में भोले भंडारी यानी भगवान शिव के अनेक मंदिर है। जिसमें से कुछ के बारे में तो हम सभी जानते है परन्तु कुछ ऐसे रहस्यमय मंदिर है जिनके बारे में अधिकतर लोग नहीं जानते होंगे। लेकिन हम सब के बीच भगवान शिव के ऐसे चमत्कारी मंदिर है जिनके बारे में आपको जानना जरूरी है। इन मंदिरों के बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव हर मनो कामना पूरी करते है। कई मंदिर अपनी उत्पति को लेकर रहस्यमय है तो कई मंदिर अपने चमत्कार और जगह को लेकर रहस्यमय है। यह वह मंदिर हैं जिनके बारे में जान कर आप चौंक जाएंगे!
श्री स्तंभेश्वर महादेव मंदिर (Shree Stambheshwar Mahadev Temple)
यह मंदिर अरब सागर के बीच है। 150 साल पहले खोजे गए इस मंदिर का उल्लेख महा शिव पुराण के रुद्र सहित में मिलता है। इस मंदिर के शिव लिंग का आकार 4 फुट ऊँचा और 2 फुट के व्यास वाला है। आप यहाँ जानकर हैरान होंगे कि यह मंदिर सुबह और शाम दिन में 2 बार पल भर के लिए गायब हो जाता है।
और कुछ देर बाद उसी जगह पर वापिस भी आ जाता है। इसका कारण अरब सागर में उठने वाले ज्वार-भाटा को बताया जाता है। इस वजह से इस मंदिर का दर्शन तभी कर सकते है जब समुद्र की लहरें बिलकुल शांत हो। यह प्रक्रिया प्राचीन समय से ही चली आ रही है।
इसके अलावा इस मंदिर से एक पौराणिक कथा भी जुडी हुई है। कथा के अनुसार राक्षस तारका-सुर ने जब भगवान शिव की कठोर तपस्या की। तो एक दिन महादेव ने उसी तपस्या से प्रसन्न हो कर प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा। उसके बाद तारका-सुर ने भगवान शिव से वरदान माँगा कि उसे सिर्फ भगवान शिव का पुत्र ही मार सकेगा और वह भी सिर्फ 6 दिन की आयु का हो तब।
महादेव ने प्रसन्न तो थे ही इसलिए तारका-सुर को यह वरदान दे दिया। वरदान मिलते ही तारका-सुर ने हाहाकार मचा दिया। इससे डर कर सभी देवता गन शिव जी के पास गए और फिर शिव जी उस वक़्त अपनी शक्ति से श्वेत पर्वत कूट से 6 मस्तक 4 आंख और 12 हाथ वाले पुत्र को उत्पन्न किया जिसका नाम था कार्तिकेय रखा। उसके बाद कार्तिकेय ने 6 दिन के उम्र में तारका-सुर का वध किया।
कार्तिकेय को जब पता चल कि तारका-सुर भगवान शिव का भक्त था तो वह चिंतित हो गए। तभी भगवान विष्णु ने उन्हें कहा कि उसी स्थान पर एक शिव लिंग बनवा दो जिससे उसका मन शांत होगा। फिर ऐसा ही किया गया जो आज स्तंभेश्वर तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है।
निष्कलंक महादेव मंदिर (Nishkalank Mahadev Mandir)
यह मंदिर गुजरात के भावनगर में कोलियाक तट से 3 किलोमीटर अरब सागर में स्थित है। लोग पैदल चल कर ही इस मंदिर में दर्शन करने आते है। दर्शन के लिए उन्हें जुवार उतरने का इंतज़ार करना पड़ता है क्योंकि ज्वर के समय में केवल मंदिर का खम्भा ही नजर आता है।
इसे देखकर यह अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता कि इसके नीचे भगवान शिव का प्राचीन मंदिर भी होगा। यह मंदिर महाभारत कालीन बताई जाती है। माना जाता है कि महाभारत युद्ध में पांडवों ने कौरवों का वध कर युद्ध जीता था। पर युद्ध समाप्त होने के बाद पांडवों को ज्ञात हुआ कि उन्होंने अपने की सगे सम्बन्धियों की हत्या कर महा-पाप किया है।
इस महापाप के छुटकारा पाने के लिए पांडव भगवान श्री कृष्णा के पास गए। जहां श्री कृष्ण ने पाप से मुक्ति के लिए एक काला ध्वज और एक काली गाय सौंपी। और पांडवों को गाय का अनुसरण करने को कहा कि जब यह गाय और ध्वज का रंग सफ़ेद हो जाए तो समझ जाना कि तुम्हें पाप से मुक्ति मिल गयी है।
और साथ ही यह भी कहा कि जहां यह चमत्कार हो वही तुम भगवान शिव की तपस्या भी करना। इसके के चलते वह सब अलग-अलग जगह पर घूमते रहे। लेकिन वह चमत्कार नहीं हुआ परन्तु जब वह गुजरात में स्थित मंदिर की जगह पहुंचे। तो गाय और ध्वज का रंग सफ़ेद पड़ गया। उस वक़्त भगवान शिव ने अलग-अलग रूप में उन्हें दर्शन दिए वहाँ शिव लिंग आज भी वही स्थित है।
अचलेश्वर महादेव मंदिर (Achaleshwar Mahadev Temple)
वैसे तो यह मंदिर और भी कई जगह है परन्तु राजस्थान के धौलपुर में स्थित अचलेश्वर महादेव मंदिर बाकी मंदिरों से अलग है। इस मंदिर का शिवलिंग दिन में 3 बार रंग बदलता है। दिन में इसका रंग लाल होता है तो दोपहर में केसरिया और शाम ढलते-ढलते शिवलिंग का रंग सांवला हो जाता है।
इन रंगो के बदलाव के रहस्य को कोई नहीं जानता। अचलेश्वर महादेव का यह मंदिर काफी प्राचीन है। मंदिर का यह इलाका डाकुओं के लिए काफी प्रसिद्ध था जिस वजह से वहाँ कम श्रद्धालु आते थे। साथ ही यहाँ तक पहुँचने का रास्ता बहुत ही पथरीला था।
जैसे जैसे लोग भगवान के बारे में जानने लगे तभी से श्रद्धालुओं की भीड़ जुटने लगी। इस शिवलिंग की एक और खास बात यह भी है कि शिवलिंग के छोर का पता कोई भी नहीं लगा पाया है। भक्तों का मानना है भगवान अचलेश्वर भक्तों की हर मनो-कामना को पूरी करते है।