रविंद्र नाथ टैगोर पर अंग्रेजों की चा’पलूसी का आरोप कितना सच था?

जन गण मन……. भारत भाग्य विधाता! यह पंक्तियां सुनते ही हमारे दिमाग में राष्ट्रगान का ख्याल आ जाता है, स्पष्ट रूप से यह हमारा राष्ट्रगान है. यह मूल रूप से बांग्ला भाषा में लिखी गई एक कविता है जिससे रविंद्र नाथ टैगोर ने 1911 में लिखा था. रविंद्र नाथ टैगोर द्वारा लिखी गई कविता की कुछ पंक्तियां हमारा राष्ट्रगान है.

इस कविता को सबसे पहले 1911 में रविंद्र नाथ टैगोर ने भारत आए जॉर्ज पंचम और उसकी पत्नी की सभा में गाया था. इस सभा के तुरंत बाद ही यह अफवाह फैल गई थी कि रविंद्र नाथ टैगोर अंग्रेजों की चा’पलूसी करते हैं और उन्होंने इस गीत का निर्माण जॉर्ज पंचम को प्रसन्न करने के लिए किया था.

ऐसा इसलिए कहा गया था क्योंकि कविता की पहली पंक्तियां जन गण मन… भारत भाग्य विधाता! का मतलब यह निकाला गया कि रविंद्र नाथ टैगोर जॉर्ज पंचम को भारत का भाग्य विधाता बता रहे हैं. अखबारों में भी इस बात को बढ़ा चढ़ाकर छापा गया. यह अ’फवाह अपने चरम पर ही थी कि 1913 में रविंद्र नाथ टैगोर को नोबेल प्राइज मिल गया जिससे लोगों को यह यकीन होने लगा कि वास्तव में अंग्रेजों की चापलूसी के कारण ही उन्हें नोबेल प्राइज दिया गया है.

कितनी सच्चाई ?

मित्रों इस बात में कोई सच्चाई नहीं है, यह महज एक अफवाह थी जिसे अखबार छापने वालों ने बढ़ा चढ़ाकर छापा था. दरअसल 1911 में जब जॉर्ज पंचम की सभा चल रही थी तब रविंद्र नाथ के तुरंत बाद ही एक अन्य कवि ने गीत गाया जिसमें उन्होंने जॉर्ज पंचम को बादशाह कहा और उसकी तारीफ की, क्योंकि यह दूसरा कवि जाना माना चेहरा नहीं था इसीलिए सब लोगों ने इस बात पर रविंद्र नाथ टैगोर को जिम्मेदार माना.

1912 में रविंद्र नाथ टैगोर ने बताया था कि उनका आशय बिल्कुल भी अंग्रेजी हुकूमत से नहीं था. उन्होंने कहा कि भारत भाग्य विधाता इस देश की जनता और सिर्फ ऊपर वाला है. 1939 में रविंद्र नाथ टैगोर ने एक पत्र पब्लिश किया जिसमें उन्होंने कहा कि मैं उन लोगों को जवाब देना अपनी बेइज्जती समझूंगा जो मुझे इस मूर्खता के लायक समझते हैं.

इसे ही राष्ट्रगान क्यों चुना गया ?

जब राष्ट्रगान का चुनाव हो रहा था तब एक ऐसे गीत ही तलाश थी जो सभी धर्मों को आपस में जोड़ता हो. क्योंकि रविंद्र नाथ टैगोर की यह कविता भारत के सभी वर्गों को एक साथ लाकर खड़ा करती है इसके अलावा इसमें देश भक्ति के लिए किसी प्रकार की मा’रकाट की बात भी नहीं है.

जो इस तरीके से लिखा गया है कि मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति भी इसे आसानी से याद कर सकता है. इसकी केवल धुन बजाकर ही इसका आनंद लिया जा सकता है. क्योंकि इतने आसान दर्जे का और कोई गीत उपलब्ध नहीं था और यह बेहद बारीकी से लिखा गया था इसलिए इसका चुनाव राष्ट्रगान के तौर पर किया गया.