रूठी रानी उमादे: जो जिंदगी भर अपने पति से रूठी रही और मृत्यु पर उनकी चिता पर बैठ सती हो गई

राजस्थान का इतिहास विभिन्न लोगों की शौर्य कथा और आत्मसम्मान को समेटे हुए हैं. ऐसे ही एक हफ्ते के बारे में आज हम चर्चा करने जा रहे हैं जिसने कभी अपने स्वाभिमान को झुकने नहीं दिया बदले में चाहे उसे जो कीमत चुकानी पड़ी. हम बात करने जा रहे हैं जैसलमेर की राजकुमारी उमादे के बारे में जो शादी के पश्चात जिंदगी भर अपने पति से रूठी रही और उनसे अलग रही. इसी वजह से वह इतिहास में रूठी रानी के नाम से प्रसिद्ध हो गई.

यह कहानी शुरू होती है 1530 के दशक से जब जोधपुर के राजा राव मालदेव चारों तरफ अपने राज्य जोधपुर की सीमा बढ़ा रहे थे. उस समय राव मालदेव की छवि एक शौर्य वान और शक्तिशाली राजा की भांति थी. अपने प्रसार कार्य में है राव मालदेव ने जैसलमेर पर भी आक्रमण करने का फैसला किया. इस बात से चिंतित जैसलमेर के राजा राव लूणकरण को जब कोई रास्ता नहीं दिखा तो उन्होंने अपनी बेटी उमादे की शादी राव मालदेव से करवाने का प्रस्ताव उनके सामने रखा.

कहा जाता है उमादे बेहद सुंदर और चतुर थी. इसी वजह से राव मालदेव ने लूणकरण का यह प्रस्ताव स्वीकार किया और उमादे से 1537 में विवाह किया. उमादे भी राव मालदेव जैसे पराक्रमी पति को पाकर काफी खुश थी. जब दोनों की शादी हुई तब उस समय की परंपरा के अनुसार राव लूणकरण ने अपनी बेटी को दहेज में दासिया भी साथ दी. उनमें से एक दासी का नाम था “भारमली” जो दिखने में काफी सुंदर थी.

विवाह संपन्न होने के बाद राव मालदेव जैसलमेर किले में ही रात्रि विश्राम के लिए रुके रहे. उधर उमादे अपने कक्ष में अपने पति का इंतजार कर रही थी. लेकिन राव मालदेव अपनी पत्नी के पास जाने के बजाए महफिल सजा कर बैठ गए. शराब और मौज मस्ती के बीच वह शायद भूल ही गए थे कि उनकी नई नवेली दुल्हन उनका इंतजार कर रही है. लंबा समय बीत जाने के बाद उमादे ने अपनी दासी भारमली को राव मालदेव को बुलाने के लिए भेजा.

जब भारमली राव मालदेव को बुलाने पहुंची तो शराब के नशे में धुत राव मालदेव की नजर भारमली के सौंदर्य पर पड़ी. वह अपनी पत्नी के पास जाने के बजाए भारमली के साथ बैठ गए. जब घंटों तक भारमली वापस नहीं आई तो उमादे स्वयं उसे ढूंढते हुए उस कक्ष तक पहुंची जहां राव मालदेव और वह स्वयं थी. उमादे नज जब अपने पति की यह हरकत अपनी आंखों से देखी तो उनके आत्मसम्मान को गहरी चोट लग गई.

उन्होंने उसी वक्त राजा से कह दिया तुम मेरे लायक नहीं हो. सुबह जब राजाजी नशे से बाहर आए तब उन्हें अपनी हरकत का अंदाजा हुआ. अब रानी उमादे किसी भी सूरत में राव मालदेव के साथ जोधपुर चलने को तैयार नहीं थी. तमाम कोशिशों के बावजूद भी रानी उमादे नहीं मानी और राव मालदेव को बिना दुल्हन की अपनी बारात वापस लानी पड़ी. तब से लगाकर आजीवन उमादे कभी जोधपुर नहीं गई.

हालांकि उसके पश्चात भी राव मालदेव ने कई बार अपने कई दूतों को रानी को लेने भेजा परंतु फिर भी वह नहीं मानी. आखिरकार 1562 में राव मालदेव की मृत्यु हो गई जिसके बाद रूठी रानी भी उनकी चिता में बैठ सती हो गई और उन्होंने अपने प्राण भी त्याग दिए.