वर्तमान में युवाओं में एक मुद्दा सबसे लोकप्रिय है जिसका नाम है आरक्षण. कई लोग इस मुद्दे पर बहस करते हुए नजर आते हैं कुछ लोग इसे सही करार करते हैं तो कुछ कहते हैं कि आरक्षण की नीतियां एक प्रकार का भेदभाव है और इसे तुरंत ही समाप्त करना चाहिए. इस विषय में मशहूर अध्यापक खान सर ने भी चर्चा की है और आज हम उन्हीं के विचार जानेंगे–
खान सर ने अपनी कक्षा में कहा था की, “हमारे संविधान की नीति इस प्रकार से है कि संविधान में उन्हें तवज्जो दी जाती है जिन्हें समाज तवज्जो नहीं देता”. स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि आरक्षण एक प्रकार का भेदभाव है जो युवाओं में उनकी जाति के आधार पर किया जाता है, लेकिन आरक्षण समाज के लिए एक सकारात्मक भेदभाव है जो समाज के सभी वर्गों को एक साथ लाकर खड़ा करता है.
यदि बात की जाए सुप्रीम कोर्ट के जज मंडली की तो इनमें से ज्यादातर लोगों समाज की ऊंची जातियों से तालुकात रखते हैं, लेकिन फिर भी सुप्रीम कोर्ट के जज हमेशा आरक्षण समाप्त नहीं करने के पक्ष में रहे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि हमारे समाज में जातीयता की खाई इतनी गहरी है कि वह अभी तक समाप्त नहीं हुई है.
हमारे समाज में जाति व्यवस्था इस प्रकार से हुई है कि सदियों से हमने समाज को कई टुकड़ों में बांट रखा है इसलिए चाह कर भी कुछ लोग दलितों के साथ उचित व्यवहार नहीं कर पाते. समाज के दबे कुचले लोगों को समान अवसर केवल नौकरियों में मिलते हैं लेकिन समाज में आज भी उन्हें उसी नजरिए से देखा जाता है जिससे कि पहले देखा जाता था.
शहरी क्षेत्र में इस परिदृश्य में सुधार देखे जा सकते हैं लेकिन ग्रामीण परिदृश्य में ऐसा कुछ भी अब तक परिवर्तन नहीं आया है. यदि आरक्षण समाप्त कर दिया जाता है तो समाज में जातीयता की खाई वापस गहरी हो जाएगी और ऊंची कही जाने वाली जातियां वापस अपना वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश करेंगे.
जैसा कि हम सोशल मीडिया और अखबारों के जरिए ऐसी घटनाएं अपने आसपास देख सकते हैं जब दलितों को दमन का शिकार होना पड़ता है. आरक्षण केवल उसी दिन समाप्त हो सकता है जब समाज में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के जहन से जातीयता नाम की चीज बाहर निकल जाए.