अगस्त महीने में तालिबान संगठन में अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था. जिसके बाद वहां की सूरत बदल गई. लोग डर के मारे देश छोड़कर भागने को मजबूर हो गए. लेकिन तालिबान के सत्ता में आने के कारण सबसे ज्यादा यदि किसी को नुकसान हुआ है तो वह है अफगानिस्तान का “महिला समाज”. क्योंकि तालिबान महिलाओं को पढ़ाने लिखाने में यकीन नहीं करता है.
तालिबान की नीतियों में एक महिला को पढ़ने लिखने का हक नहीं है. इसके अलावा उसके मताधिकार जैसे भी कोई अधिकार नहीं है, कोई महिला घर से बाहर काम नहीं कर सकती. 8 साल से ऊपर कि हर लड़की को बुर्का पहनना भी अनिवार्य है.
केवल इतना ही नहीं कोई भी महिला अपने घर से बाहर अकेले नहीं जा सकती, उसके साथ घर का कोई ना कोई पुरुष सदस्य होना आवश्यक है. केवल इतना ही नहीं किसी भी उम्र की लड़की की शादी उसकी बिना मर्जी लिए किसी भी व्यक्ति से करवाई जा सकती थी.
यानी यदि 10 साल की बच्ची की शादी 50 बरस के व्यक्ति से करवाई जाए तो भी यह गलत नहीं था. लेकिन अब तालिबान ने अपनी नीतियों में कुछ संशोधन किया है, जिसकी घोषणा बीते कुछ दिनों पहले की गई है.
क्या है महिलाओं को लेकर नया नियम ?– तालिबान के नेता हिबतुल्ला अखुंजादा ने कुछ दिनों पहले अपने घोषणा पत्र के जरिए यह घोषणा की, कि अब से शादी के मामले में महिला और पुरुष दोनों की मर्जी ली जाएगी.
उन्होंने कहा कि देश में गरीबी और रूढ़िवादी सोच के कारण लोग अपनी बेटियों की शादी किसी से भी करवा देते हैं, उसमें किसी प्रकार की उम्र का लिहाज भी नहीं होता. लेकिन अब से किसी भी महिला की जबरन शादी नहीं करवाई जाएगी. जबकि पहले यहां कोई विवाद सुलझाने और पैसों के बदले भी जबरन शादी करवा दी जाती थी
उन्होंने आगे कहा कि यदि किसी महिला का पति मर जाता है तो 17 हफ्ते में उसको दूसरी शादी करने की अनुमति है. इससे पहले यह होता था कि जब किसी महिला का पति गुजर जाता तो वह केवल पति के भाई या अन्य किसी रिश्तेदार से ही शादी कर सकती थी. लेकिन अब महिला अपनी मर्जी से दूसरी शादी कर पाएगी.
हालांकि हिबतुल्ला अखुंजादा ने शादी करने के लिए न्यूनतम उम्र का जिक्र नहीं किया है, इससे पहले न्यूनतम उम्र 16 साल निर्धारित थी. इसके अलावा महिलाओं को लेकर अन्य किसी कानून में कोई संशोधन नहीं किया गया है, यानी महिलाओं को अब भी पढ़ने लिखने, मताधिकार, नौकरी करने, घर से बाहर जाने, और अपनी इच्छा से सजने संवरने का अधिकार नहीं है.
आखिर क्यों किया तालिबान ने अपने फैसले में संशोधन ?– तालिबान के अपने फैसले में संशोधन करने के पीछे राजनीतिक कारण बताया जा रहा है. कहा जा रहा है की तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा तो कर लिया है लेकिन अभी तक किसी भी विकसित राष्ट्र ने उनको मान्यता नहीं दी है. इसी कारण अफगानिस्तान में सभी अंतरराष्ट्रीय सुविधाएं बंद हो चुकी है.
कोई इस देश में आना तक नहीं चाहता. इसके अलावा सारा विदेशी फंड बंद हो चुका है और अर्थव्यवस्था चरमरा चुकी है. अफगानिस्तान बर्बादी की कगार पर है और लोग भूखे मर रहे हैं. अफगानिस्तान को मान्यता नहीं देने के पीछे उनकी दकियानूसी नीतियां है, इसलिए तालिबान उम्मीद कर रहा है कि यदि वह अपने कानूनों में छोटे-मोटे संशोधन करेगा तो शायद कोई विकसित राष्ट्र अफगानिस्तान की तरफ नजर डालें.